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Posts tagged ‘navratri-2011’

मां शैलपुत्री का पूजन सिद्धियां एवं उपलब्धियां प्रदान करता हैं।

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प्रथम शैलपुत्री
नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं।पर्वतराज (शैलराज)हिमालय के यहांपार्वती रुप में जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
भगवती नंदी नाम के वृषभ पर सवारहैं।  माता शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
मां शैलपुत्री को शास्रों में तीनो लोक के समस्त वन्यजीव-जंतुओं का रक्षक माना गया हैं। इसी कारण से वन्य जीवन जीने वाली सभ्यताओं में सबसे पहलेशैलपुत्री के मंदिर की स्थापना की जाती हैं जिस सें उनका निवास स्थान एवं उनके आस-पास के स्थान सुरक्षित रहे।Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मूल मंत्र:
वन्दे वांछितलाभायचन्दार्धकृतशेखराम्।  वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
ध्यान मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्।वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।
पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्।धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।भुक्ति मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।
कवच:-
ओमकार: मेशिर: पातुमूलाधार निवासिनी। हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी। श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी। हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत। फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां शैलपुत्री का मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को सदा धन-धान्य सेसंपन्न रहता हैं। अर्थात उसे जिवन में धन एवं अन्य सुख साधनो को कमी महसुस नहीं होतीं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र के प्रथमदिनकीउपासनासे योगसाधनाको प्रारंभ करने वाले योगीअपनेमनसेमूलाधारचक्रको जाग्रत कर अपनी उर्जा शक्ति को केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें अनेक प्रकार किसिद्धियां एवं उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।

>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2010

मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?

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,मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?
लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:
नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता: प्रणता: स्मताम्॥
अर्थात: देवी देवी को नमस्कार हैं, महादेवी को नमस्कार हैं। महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार हैं। प्रकृति एवं भद्रा को मेरा प्रणाम हैं। हम लोग नियमपूर्वक देवी जगदम्बा को नमस्कार करते हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


उपरोक्त मंत्र से देवी दुर्गाकास्मरणकरप्रार्थनाकरनेमात्रसेदेवीप्रसन्नहोकरअपनेभक्तोंकीइच्छापूर्णकरतीहैं।समस्त देव गण जिनकी स्तुति प्राथना करते हैं। माँदुर्गाअपनेभक्तो कीरक्षाकरउन पर कृपा द्रष्टी वर्षाती हैं और उसको उन्नती के शिखर पर जाने का मार्ग प्रसस्त करती हैं। इस लिये ईश्वर में श्रद्धा विश्वार रखने वाले सभी मनुष्य को देवीकीशरणमेंजाकरदेवीसेनिर्मल हृदय से प्रार्थनाकरनी चाहिये।
देवीप्रपन्नार्तिहरेप्रसीद प्रसीदमातर्जगतोsखिलस्य।
पसीदविश्वेतरिपाहिविश्वं त्वमीश्चरीदेवीचराचरस्य।
अर्थात: शरणागतकिपीड़ादूरकरनेवालीदेवीआपहमपरप्रसन्नहों।संपूर्णजगतमाताप्रसन्नहों।विश्वेश्वरी देवी विश्वकिरक्षाकरो।देवी  आप हि एक मात्र चराचर जगतकिअधिश्वरीहो।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वमंगलमांगल्येशिवेसर्वार्थसाधिके
शरण्येत्रयम्बकेगौरिनारायणि  नमोऽस्तुते॥
सृष्टिस्थितिविनाशानांशक्तिभूतेसनातनि।
गुणाश्रयेगुणमयेनारायणिनमोऽस्तुते॥
अर्थात: हेदेवीनारायणी  आपसबप्रकारकामंगलप्रदानकरनेवालीमंगलमयीहो।कल्याण दायिनी शिवाहो।सबपुरूषार्थोंकोसिद्धकरनेवालीशरणा गतवत्सला तीननेत्रोंवालीगौरीहो, आपकोनमस्कारहैं।आपसृष्टिकापालनऔरसंहारकरने वाली शक्तिभूतासनातनीदेवी, आपगुणोंकाआधारतथासर्वगुणमयीहो।नारायणी देवी तुम्हेंनमस्कारहै।
इस मंत्र के जप से माँकि शरणागती प्राप्त होती हैं। जिस्से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापोंकानाश होता है।मांजननीसृष्टिकि आदि, अंतऔरमध्यहैं।
देवीसेप्रार्थनाकरें
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिंहरेदेविनारायणिनमोऽस्तुते
अर्थात: शरणमेंआएहुएदीनोंएवंपीडि़तोंकीरक्षामेंसंलग्नरहनेवालीतथासबकिपीड़ादूरकरनेवालीनारायणीदेवीआपको नमस्कारहै।
रोगानशेषानपहंसितुष्टा रूष्टातुकामानसकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानांविपन्नराणां त्वामाश्रिताहाश्रयतांप्रयान्ति।
अर्थातः देवी आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।st By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वबाधाप्रशमनंत्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेवत्वयाकार्यमस्यध्दैरिविनाशनम्।
अर्थातःहेसर्वेश्वरीआपतीनोंलोकोंकिसमस्तबाधाओंकोशांतकरोऔरहमारेसभी शत्रुओंकानाशकरतीरहो।
Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH 
शांतिकर्मणिसर्वत्रतथादु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासुचोग्रासुमहात्मयंशणुयात्मम।
अर्थातःसर्वत्रशांतिकर्ममें, बुरेस्वप्नदिखाईदेनेपरतथाग्रह जनित पीड़ाउपस्थितहोनेपरमाहात्म्यश्रवणकरनाचाहिए।इससेसबपीड़ाएँशांतऔरदूरहोजातीहैं।
यहि कारण हैं सहस्त्रयुगों से मां भगवती जगतजननी दुर्गा की उपासना प्रति वर्ष वसंत, आश्विन एवं गुप्त नवरात्री में विशेष रुप से करने का विधान हिन्दु धर्म ग्रंथो में हैं।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2011

नवरात्र में मां दुर्गा के नवरुपों कि उपासना कल्याणकारी हैं

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नवरात्र में मां दुर्गा के नवरुपों कि उपासना कल्याणकारी हैं
लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना निम्न मंत्रों के द्वारा की जाती हैप्रथम दिन शैलपुत्री की एवं क्रमशः मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना की जाती है।
शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चन्द्रघण्टा कूष्माण्डा स्कन्दमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री
1.शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् 
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् 

2. ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू 
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा 

3. चन्द्रघण्टा
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता 
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता 

4. कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव  
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे 

5. स्कन्दमाता
सिंहासनगतानित्यंपद्माश्रितकरद्वया
शुभदास्तुसदादेवीस्कन्दमातायशस्विनी

6. कात्यायनी
चन्द्रहासोज्वलकराशार्दूलवरवाहना
कात्यायनीशुभंदद्याद्देवीदानवघातिनी

7. कालरात्रि
एकवेणीजपाकर्णपूरानग्नाखरास्थिता
लम्बोष्ठीकर्णिकाकर्णीतैलाभ्यक्तशरीरिणी
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा
वर्धनमूर्धध्वजाकृष्णाकालरात्रिर्भयङ्करी

8. महागौरी
श्वेतेवृषेसमारुढाश्वेताम्बरधराशुचिः
महागौरीशुभंदद्यान्महादेवप्रमोददा

9. सिद्धिदात्री

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि
सेव्यमानासदाभूयात्सिद्धिदासिद्धिदायिनी

>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2011

आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान (28 सितम्बर 2011)

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आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH,
पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 

घट स्थापनकी शास्त्रोक्त विधि इस प्रकार हैं।  GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु चित्रा नक्षत्र और वैधृतियोग को वर्जित माना गया हैं। (चित्रा नक्षत्र 28 सितंबर 2011 को दोपहर 01:37:33बजे से लग रहा हैं।) घट स्थापना में चित्रा नक्षत्र को निषेध माना गया हैं। अतः घट स्थापना इससे पूर्व करना शुभ होता हैं।
विद्वनो के मत से इस वर्ष शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में सूर्योदयी नक्षत्र हस्त नक्षत्र रहेगा। हस्त नक्षत्र को पूजन हेतु उत्तम माना जाता हैं। हैं। इस लिये सूर्योदय से 6.12 बजे के बाद से ही कलश (घट) की स्थापना करना शुभदायक रहेगा।
यदि ऎसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
कलश स्थापना हेतु शुभ मुहूर्त
  • लाभ मुहूर्त सुबह 06:12 से 07:42 तक
  • अमृत मुहूर्त सुबह 07:42 से 09:12 तक
  • शुभ मुहूर्त सुबह 10:42 से 12:12 तक
  • के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त रहेंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं बोएं तथा उस पर अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
यदि पूर्ण विधि-विधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेश-अंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ब्राह्मण द्वारा कराएं अथवा अमर्थता हो, तो स्वयं करें।
पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें- GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।

कलश स्थापना की संपूर्ण-विधि गुरुत्व ज्योतिष मासिक पत्रिका के अक्टूबर-2011 के अंक में उप्लब्ध हैं।