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Archive for नवम्बर, 2010

अपने दिन को मंगलमय केसे बनाये ? (भाग: १)

Apane Din ko Mangalmay Kese Banaye ? (Bhag :1)

अपने दिन को मंगलमय केसे बनाये ? (भाग: १)

हिन्दू धर्म-शास्त्रो में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अनेक विधानों का उल्लेख मिलता है। लेकिन आज की व्यस्त जीवन में व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसी स्थितिओं में विशिष्ट तेजस्वी मंत्रों के उच्चारण द्वारा भगवान को स्मरण करके उनकी कृपा सरलता से प्राप्त कर सके उसके लिये कुछ विशिष्ट तेजस्वी मंत्रो का वर्णण किया जारहा हैं।

प्रातः कर दर्शनं मंत्र

सुबह बिस्तर से उठने से पेहले (अर्थातः बिस्तर छोडनेसे पूर्व) इस मंत्र के स्मरण से हमारे अंदर एक अद्भुत शक्ति का संचार होता हैं। जिस्से हमारे अंतरमन से हतासा और निराशा जेसी नकारात्म भावनाओं को दूर हो कर हमारे अंदर एक सकारात्मन द्रष्टिकोण का निर्माण होता है। जो हमे अपने जीवन में आगे बढने के लिये सरल और उत्तम मार्ग खोजने मे सहायक सिद्ध होती है।

यह प्रयोग अद्भुत और शीघ्र प्रभाव दिखाने मे समर्थ है।

कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तू गोविंद प्रभाते कर दर्शनं॥
Karagre Vasate Lakshami, Kar Madhaye Sawaswati
Kar Moole too Govindam Prabhate Kar Darshanam

भावार्थ:  उंगलियों के अग्र भाग में लक्ष्मी जी निवास करती हैं, हथेली के मध्य भाग में सरस्वती जी और हथेली के मूल में नारयण का वास है, जिनका सवेरे दर्शन करना शुभप्रद है।

मंत्र को ३ या ७ बार मनमे उच्चरण करे।

अपने दोनो हाथो को जोडकर हथेली को देखते हुवे दिये गये मंत्र को पढते हुवे अपने अंतर मन में एसा भाव लाये की हमारे हाथ के अग्र भाग में मां महालक्ष्मी, तथा हाथ के मध्य भाग मे मां सरस्वती का वास है, और हाथ के मूल भाग मे स्वयं भगवान हरि बिराजमान है।

इस के लाभ: दिनभर मन प्रसन्न रहता है और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होकर हमे सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है।

(इस मंत्र के उच्चरण के बाद मे बिस्तर छोडे)
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हिन्दू धर्म (भाग: १)

Hindu Dharam

हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म वेदों पर आधारित है ।
हिन्दू धर्म में देवी-देवता को विभिन्न रुप मे पूजा जाने पर भी उनको एक ही ईश्वर के विभिन्न रूप माना जाता है । मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं।

धृति क्षमा दमोस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो , दसकं धर्म लक्षणम ॥

अर्थातः

1. धैर्य

2. क्षमा

3. संयम

4. चोरी न करना

5. शौच (स्वच्छता)

6. इन्द्रियों को वश मे रखना

7. बुद्धि

8. विद्या

9. सत्य और

10. क्रोध न करना

ये दस धर्म के लक्षण हैं ।

धर्म की कसौटी

धर्म के अनुशार जो अपने अनुकूल न हो?  वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये – यह धर्म की कसौटी है।

धर्म का सर्वस्व क्या है?,

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रूत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि , परेषाम् न समाचरेत् ॥

(सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने/अपनो को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) विश्व के सभी पुरातन धर्मों में सबसे पुराना धर्म है।

हिन्दू धर्म वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, सम्प्रदाय, और द्रष्टिकोण समेटे हुए है।

हिन्दू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन असल में हिन्दू धर्म मे इश्वर एक है और उस्के स्वरुप भिन्न है पर ज्यादा जोर दिया गया है।

हिन्दी में इस धर्म को सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं।
इंडोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम “हिन्दु आगम” है।
हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।

” हिन्सायाम दूयते या सा हिन्दु “

अर्थात
जो अपने मन वचन कर्म से हिंसा से दूर रहे वह हिन्दु है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है।

क्रमशः अगल क्रम शीध्र प्रस्तुत होगा।

मंत्र की परीभाषा

Mantra ki Paribhasha/Pareebhasha

परिभाषा

मंत्र की परीभाषा: मंत्र उस ध्वनि को कहते है जो अक्षर(शब्द) एवं अक्षरों (शब्दों) के समूह से बनता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में दो प्रकार कि ऊर्जा से व्याप्त है, जिसका हम अनुभव कर सकते है, वह ध्वनि उर्जा एवं प्रकाश उर्जा है। एवं ब्रह्माण्ड में कुछ एसी ऊर्जा से व्याप्त भी व्याप्त है जिसे ना हम देख सकते है नाही सुन सकते है नाहीं अनुभव कर सकते है।

आध्यात्मिक शक्ति इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र सिर्फ़ ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते सकते हैं, ध्वनियाँ तो मात्र मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं जिसे हम सुन सकते हैं।

ध्यान की उच्चतम अवस्था में व्यक्ति का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से ब्रह्माण्ड की अलौकिक शक्तिओ के साथ मे एकाकार हो जाता है।

जिस व्यक्ति ने अन्तर ज्ञान प्राप्त कर लिया है. वही सारे ज्ञान एवं ‘शब्द’ के महत्व और भेद को जान सकता है।

प्राचीन ऋषियों ने इसे शब्द-ब्रह्म की संज्ञा दी – वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर व्यक्ति को मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर ने मे समर्थ हो सकता है.

गणेश चतुर्थी व्रत(25-नवम्बर-2010)

Ganesh Chaturthi Vrat, गणेश चतुर्थी व्रत 25। November | 2010

गणेश चतुर्थी व्रत के बारें में अधिक जानकारे हेतु यहां क्लिक करें

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बजरंग बाण

Bajarang Baan

॥ बजरंग बाण ॥
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता । शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर । अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
॥ दोहा ॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
कुछ संस्करणों में उपरोक्त दोहा “उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै”
के स्थान पर निम्न प्रकार से उल्लेखित किया गया है।
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान॥

हनुमान चालीसा

Hanuman Chalisa

||  हनुमान चालीसा ||
||  दोहा ||
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
||  चौपाई ||
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ ॥१॥
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥ ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥ ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥ ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।। ॥५॥
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥ ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥ ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥ ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥ ॥१०॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥ ॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ ॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥ ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥ ॥१६॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥ ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥ ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥ ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥ ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ ॥२५॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥ ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥ ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥ ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥ ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥ ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥ ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥ ॥३३॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥ ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥ ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥ ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥ ॥४०॥
||  दोहा ||
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
|  इति श्री हनुमान चालीसा सम्पूर्ण |

नवग्रह स्तोत्रम

Navgrah Strotram नबग्रह स्तोत्रम

||नवग्रह स्तोत्रम||
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु शशि भूमि सुतो बुधश्च
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकराः भवन्तु ….

नियमित रुइ से नव ग्रह स्तोत्र के पाठ से नव ग्रहों की अशुभता दुर होकर शुभता प्राप्त होती है।

सुख-शान्ति-समृद्धि

सुख-शान्ति-समृद्धि

की प्राप्ति के लिये भाग्य लक्ष्मी दिब्बी जिस्से धन प्रप्ति, विवाह योग, व्यापार वृद्धि, वशीकरण, कोर्ट कचेरी के कार्य, भूतप्रेत बाधा, मारण, सम्मोहन, तान्त्रिक बाधा, शत्रु भय, चोर भय जेसी अनेक परेशानियो से रक्षा होति है और घर मे सुख समृद्धि कि प्राप्ति होति है,

भाग्य लक्ष्मी दिब्बी मे लघु श्री फ़ल, हस्तजोडी (हाथा जोडी), सियार सिन्गी, बिल्लि नाल, दक्षिणा वर्ती शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इन्द्र जाल, माय जाल, पाताल तुमडी जेसी अनेक दुर्लभ सामग्री होती है.

मूल्य:- ९१० से ८२०० तक उप्लब्द्ध (Ind Rupee)
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे:- http://gk.yolasite.com/

Bhagaya Lakshami Box
(और ज्यादा…)

देव पूजन मे मूर्ति

Dev Poojan Me Vastu – Murti,

देव पूजन मे कुछ वास्तुशास्त्री घर मे पत्थरकी मूर्ति का अथवा मन्दिर का निषेध करते है।
वास्तवमे मूर्ति का निषेध नही है, पर एक बितेसे/१२ अंगुल अधिक ऊंची मूर्ति का निषेध है।*


अगुड्ष्ठपर्वादारभ्य वितस्तिर्यावदेव तु।
गृहेषु प्रतिमा कार्या नाधिका शस्यते बुधैः॥
                                            (मत्स्यपुराण २५८।५२)

अर्थान्त
“घरमे अंगूठके पर्वसे लेकर एक बित्ता परिमाणकी ही मूर्ति होनी चाहिये। इस्से बडी मूर्ति को विद्वानलोग घर मे शुभ नही बताते।”


शैलीं दरुमयीं हैमीं धात्वाघाकारसम्भवाम।
प्रतिष्ठां वै पकुर्वीत प्रसादे वा गृहे नृप॥
                                              (वृद्धपाराशर)

अर्थान्त:
“पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओंकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा घर या घर मन्दिर में करनी चाहिये।”
घर या घर मन्दिर में एक बित्ते से अधिक बडी पत्थर की मूर्तिकी स्थापना से गृहस्वामीकी सन्तान नहीं होती। उसकी स्थापना देव मन्दिर मे ही करनी चाहिये।

गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा।
शंखद्वयं तथा सूर्यो नाच्यौं शक्तित्रयं तथा।।
द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्रामशिलाद्वयम।
तषां तु पूजनेनैव उद्वेगं प्राप्तुयाद गृही॥

                               (आचारप्रकाश:आचारेन्दु)

अर्थान्त:
“घर मे दो शिव लिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य-प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो द्वारकाकेचक्र (गोमति चक्र) और दो शालग्रामका पूजन करनेसे गृहस्वामीको उद्वेग (अशांति) प्राप्त होती है।”

*अंगूठेके सिरे से लेकर कनिष्ठा के छोरतक एक बित्ता होता है। एवं एक बित्तेमें १२ अंगुल होते है।

अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करे:-

GURUTVA KARYALAY
BHUBANESWAR (ORISSA)
INDIA
PIN- 751 018
CALL:- 91 + 9338213418, 91+ 9238328785

Email:- gurutva_karyalay@yahoo.in
gurutva.karyalay@gmail.com
chintan_n_joshi@yahoo.co.in

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श्री यंत्र

SHRI yantra poojana, shree yantram puja, श्री यन्त्र, श्री यंत्र पूजन

 
॥श्री यंत्र॥

“श्री यंत्र” सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली यंत्र है। “श्री यंत्र” को यंत्र राज कहा जाता है क्योकि यह अत्यन्त शुभ फ़लदयी यंत्र है। जो न केवल दूसरे यन्त्रो से अधिक से अधिक लाभ देने मे समर्थ है एवं संसार के हर व्यक्ति के लिए फायदेमंद साबित होता है। पूर्ण प्राण-प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त “श्री यंत्र” जिस व्यक्ति के घर मे होता है उसके लिये “श्री यंत्र” अत्यन्त फ़लदायी सिद्ध होता है उसके दर्शन मात्र से अन-गिनत लाभ एवं सुख की प्राप्ति होति है।

“श्री यंत्र” मे समाई अद्रितिय एवं अद्रश्य शक्ति मनुष्य की समस्त शुभ इच्छाओं को पूरा करने मे समर्थ होति है। जिस्से उसका जीवन से हताशा और निराशा दूर होकर वह मनुष्य असफ़लता से सफ़लता कि और निरन्तर गति करने लगता है एवं उसे जीवन मे समस्त भौतिक सुखो कि प्राप्ति होति है।

“श्री यंत्र” मनुष्य जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्या-बाधा एवं नकारात्मक उर्जा को दूर कर सकारत्मक उर्जा का निर्माण करने मे समर्थ है। “श्री यंत्र” की स्थापन से घर या व्यापार के स्थान पर स्थापित करने से वास्तु दोष य वास्तु से सम्बन्धित परेशानि मे न्युनता आति है व सुख-समृद्धि, शांति एवं ऐश्वर्य कि प्रप्ति होती है।
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