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Archive for फ़रवरी, 2011

जब लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा को मिला शाप

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जब लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा को मिला शाप
लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा तीनो नारायण के निकट निवास करती थीं। एक बार गंगा ने नारायण के प्रति अनेक कटाक्ष किये। नारायण तो बाहर चले गये किन्तु इस बात से सरस्वती रुष्ट हो गयी। सरस्वती को लगता था कि नारायण गंगा और लक्ष्मी से अधिक प्रेम करते हैं। लक्ष्मी ने दोनों का बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया। सरस्वती ने लक्ष्मी को निर्विकार जड़वत् मौन देखा तो जड़ वृक्ष अथवा सरिता होने का शाप दिया। सरस्वती को गंगा की निर्लज्जता तथा लक्ष्मी के मौन रहने पर क्रोध था। उसने गंगा को पापी जगत का पाप समेटने वाली महानदी बनने का शाप दिया। गंगा ने भी सरस्वती को मृत्युलोक में नदी बनकर जनसमुदाय का पाप प्राक्षालन करने का शाप दिया। तभी नारायण भी वापस आ पहुँचे। उन्होंने सरस्वती को शांत किया तथा कहा एक पुरुष अनेक नारियों के साथ निर्वाह नहीं कर सकता। परस्पर शाप के कारण तीनों को अंश रूप में वृक्ष अथवा सरिता बनकर मृत्युलोक में प्रकट होना पड़ेगा। लक्ष्मी! तुम एक अंश से पृथ्वी पर धर्म-ध्वज राजा के घर अयोनिसंभवा कन्या का रूप धारण करोगी, भाग्य-दोष से तुम्हें वृक्ष तत्व की प्राप्ति होगी। मेरे अंश से जन्मे असुरेंद्र शंखचूड़ से तुम्हारा पाणिग्रहण होगा। भारत में तुम तुलसी नामक पौधे तथा पदमावती नामक नदी के रूप में अवतरित होगी। किन्तु पुन: यहाँ आकर मेरी ही पत्नी रहोगी। गंगा, तुम सरस्वती के शाप से मनुष्यो के पाप नाश करने वाली नदी का रूप धारण करके अंश रूप से अवतरित होगी। तुम्हारे अवतरण के मूल में भागीरथ की तपस्या होगी, अत: तुम भागीरथी कहलाओगी। मेरे अंश से उत्पन्न राजा शांतनु तुम्हारे पति होंगे। अब तुम पूर्ण रूप से शिव के समीप जाओ। तुम उन्हीं की पत्नी होगी। सरस्वती, तुम भी पापनाशिनी सरिता के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होगी। तुम्हारा पूर्ण रूप ब्रह्मा की पत्नी के रूप में रहेगा। तुम उन्हीं के पास जाओ। उन तीनों ने अपने कृत्य पर क्षोभ प्रकट करते हुए शाप की अवधि जाननी चाही। कृष्ण ने कहा कलि के दस हज़ार वर्ष बीतने के उपरान्त ही तुम सब शाप-मुक्त हो सकोगी। सरस्वती ब्रह्मा की प्रिया होने के कारण ब्राह्मी नाम से विख्यात हुई।

ज्योतिष और शिक्षा विद्या विचार

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ज्योतिष और विद्या विचार
 
हर माता-पिता की कामना होती है कि उनका बच्चें परीक्षा में उच्च अंकों से उत्तीर्ण हो एवं उसे सफलता मिले। उच्च अंकों का प्रयास तो सभी बच्चें करते हैं पर कुछ बच्चें असफल भी रह जाते हैं। कई बच्चों की समस्या होती है कि कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें अधिक याद नहीं रह पाता, वे कुछ जबाव भूल जाते हैं। जिस वजह से वे बच्चें परीक्षा में उच्च अंकों से उत्तीर्ण नहीं होपाते या असफल होजाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुशार विद्या का विचार जन्म कुंडली में पंचम भाव से किया जाता हैं। विद्या एवं वाणी का निकटस्थ संबध होता हैं। अतः विद्या योग का विचार करने के लिए द्वितीय भाव भी सहायक होता हैं।
चन्द्र और बुध की स्थिति से विद्या प्राप्ति के लिये उपयोगी जातक का मानसिक संतुलन एवं मन की स्थिती का आंकलन किया जाता हैं। कई विद्वानो के अनुशार बुध तथा शुक्र की स्थिति से व्यक्ति की विद्वता एवं सोचने की शक्ति का विचार किया जाता है।
  • शास्त्रो के अनुशार बुध विद्या, बुद्धि और ज्ञान का स्वामी ग्रह हैं, इस लिये 12 वर्ष से 24 वर्ष की उम्र विद्याध्ययन की होती है, चाहे वह किसी प्रकार की विद्या हो, इस अविध को बुध का दशा काल माना जाता हैं।
  • जातक में विद्या की स्थिरता, अस्थिरता एवं विकास का आंकलन बृहस्पति (गुरु) से किया जाता हैं।
  • विदेशी भाषा एवं शिक्षा का विचार शनि की स्थिति से किया जाता हैं।
  • ज्योतिष के अनुशार असफलता का कारण बच्चें की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध का अशुभ प्रभाव है।
चंद्रमा और बुध का संबंध विद्या से हैं, क्योकि मन-मस्तिष्क का कारक चंद्रमा है, और जब चंद्र अशुभ हो तो चंचलता लिए होता है तो मन-मस्तिष्क में स्थिरता या संतुलन नहीं रहता हैं, एवं बुध की अशुभता की वजह से बच्चें में तर्क व कुशाग्रता की कमी आती है। इस वजह से बच्चें का मन पढाई मे कम लगता हैं और अच्छे अंकों से बच्चा उत्तीर्ण नहीं हो पाता।
 
भारतीय ऋषि मुनिओं ने विद्या का संबंध विद्या की देवी सरस्वती से बताय हैं। तो जिस बच्चें की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध का अशुभ प्रभावो हो उसे विद्या की देवी सरस्वती की कृपा भी नहीं होती। एसे मे मां सरस्वती को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त चंद्रमा और बुध ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम कर शुभता प्राप्त की जा सकती है।
मां सरस्वती को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करने का तत्पर्य यह कतई ना समजे की सिर्फ मां की पूजा-अर्चना करने से बच्चा परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो एवं उसे सफलता मिल जायेगी क्योकि मां सरस्वती उन्हीं बच्चों की मदद करती हैं, जो बच्चे मेहनत मे विश्वास करेते और मेहनत करते हैं। बिना मेहनत से कोइ मंत्र-तंत्र-यंत्र परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने मे सहायता नहीं करता है। मंत्र-तंत्र-यंत्र के प्रयोग से एक तरह की सकारत्मक सोच उत्पन्न होती है जो बच्चें को पढाई मे उस्की स्मरण शक्ती का विकास करती हैं।
• जन्म कुंडली में यदि बुध स्वग्रही, मित्रग्रही, उच्चस्थ हो या शुभ ग्रहो से द्रष्ट हो तो जातक की लिखावट एवं लेखन कला उच्च कोटी कि होती हैं।
• जन्म कुंडली में पंचम भाव में यदि बृहस्पति (गुरु) अकेला स्थित हो तो जातक के विद्या प्राप्ति स्थाई या अस्थाई रुप से प्राभावित हो सकती हैं
• जन्म कुंडली में पंचम भाव में बुध एवं शुक्र की युति को भी विद्या प्राप्ति के लिये बाधन माना गया हैं।
• जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी 6,8 या 12 भाव में हो तो जातक की मध्य भाग कि माध्यमिक शिक्षा प्राभावित हो सकती हैं।
• जन्म कुंडली में बलवान शनि का प्रभाव भी परीक्षा में हमेशा माना गया हैं। इस योग में ज्यादातर बच्चे परीक्षा में असफल होते देखे गए हैं।

सरस्वती पूजन से बच्चे बनते हैं महाबुद्धिमान?

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सरस्वती पूजन से बच्चे बनते हैं महाबुद्धिमान?
हिन्दू परंपरामें देवी शक्ति के तीन रूपों दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की उपासना का विशेष महत्व है। देवी सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी माना जाता हैं। अतः इनके पूजन से देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होने पर व्यक्ति को विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होकर उसके चरित्र एवं व्यक्तित्व का विकास होता हैं।
शास्त्रो के जानकारे एवं विद्वानो के मत से विद्या प्राप्त होने पर व्यक्ति में विनम्रता आती हैं, विनम्रता से पात्रता बढती हैं और पात्रता बढने से धन-संपत्ती बढती हैं। अर्थात देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होने पर व्यक्ति मानसिक रूप से दृढ संकल्पी एवं मजबूत बनता हैं।
माघ शुक्ल की पंचमी अर्थातः वसंत पंचमी के दिन सरस्वतीजी के पूजन का विशेष महत्व होता हैं। वसंत पंचमी के दिन देवी का पूजन बहुत शुभ एवं लाभदायक माना जाता हैं। बुद्धि और विद्या की कामना एवं सफलता प्राप्ति हेतु वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा अत्यंत लाभदायक रहती हैं।
वसंत पंचमी के दिन सरस्वतीजी की कृपा प्राप्ति हेतु विशेष पूजा विधि और विशेष प्रार्थना
वसंत पंचमी की सुबह स्नान के पश्चयात पवित्र आचरण, स्वच्छ कपडे पहन कर देवी सरस्वती का पूजन करें।
पूजन के लिए गंध, अक्षत (अखंडित चावल), सफेद और पीले रंग के फूल, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र अर्पित कर देवी सरस्वती का पूजन करें।
देवी सरस्वती को खीर, दूध, दही, घी, मिश्री, फल, सफेद तिल के लड्डू, नारियल का प्रसाद चढ़ाएं।
पश्चयात देवी सरस्वती की इस स्तुति कर देवी से विद्या, बुद्धि और ज्ञान प्राप्ति की कामना करते हुए घी का दीप जलाकर देवी सरस्वती की आरती करें।
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥2॥

सरस्वती के विभिन्न मंत्र से विद्या प्राप्ति

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सरस्वती के विभिन्न मंत्र से विद्या प्राप्ति
ज्यादातर विद्यार्थियों कि स्मरण शक्ति कमजोर होती हैं। बच्चे को एवं उसके माता-पिता को एसा लगता हैं, कि बच्चे का मन पढाई में नहीं लगता, या बच्चे जितनी मेहनत करते हैं उन्हें उसके अनुरुप फल नहीं मिलता, परीक्षा के प्रश्न पत्र में लिखते समय उसे भय रहता हैं, बच्चे ने जो पढाई कि हैं वह परिक्षा पत्र में लिखते समय भूल जाता हैं, इत्यादी.., कारणो से बच्चे और माता-पिता हमेशा परेशान रहते हैं।
कुछ बच्चे होते हैं, जो एक या दो बार पढने पर याद कर लेते हैं, तो कुछ बच्चे वही पाठ्य सामग्री अधिक समय पढने के उपरांत भी कुछ याद नहीं रहता।
एसा क्यूं होता हैं? इस का मुख्य कारण हैं, अनुचित ढंग से कि गई पढाई या पढाई में एकाग्रता की कमी। विद्या अध्ययन में आने वाली रुकावटो एवं विघ्न बाधाओं को दूर करने हेतु शास्त्रो में कुछ विशिष्ठ मंत्रो का उल्लेख मिलता हैं। जिसके जप से पढाई में आने वाली रुकावटे दूर होती हैं एवं कमजोर याद शक्ति इत्यादी में लाभ प्राप्त होता हैं।

सरस्वती मंत्र:

या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।
या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता ।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा ॥१॥

भावार्थ: जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर अपना आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती आप हमारी रक्षा करें।

सरस्वती मंत्र तन्त्रोक्तं देवी सूक्त से :

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

विद्या प्राप्ति के लिये सरस्वती मंत्र:
घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्‌।
गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्‌॥

भावार्थ: जो अपने हस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्य का नाश करने वाली महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती जो प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है।

अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र प्रयोग:
प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें । अब चित्र या यंत्र के ऊपर श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प व अक्षत (चावल) भेंट करें और धूप-दीप जलाकर देवी की पूजा करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक की माला से किसी भी सरस्वती मंत्र की शांत मन से एक माला फेरें।

सरस्वती मूल मंत्र:
ॐ ऎं सरस्वत्यै ऎं नमः।

सरस्वती मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।

सरस्वती गायत्री मंत्र:

१ – ॐ सरस्वत्यै विधमहे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात।
२ – ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि । तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात।

ज्ञान वृद्धि हेतु गायत्री मंत्र :
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

परीक्षा भय निवारण हेतु:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।

स्मरण शक्ति नियंत्रण हेतु:
ॐ ऐं स्मृत्यै नमः।

विघ्न निवारण हेतु:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।

स्मरण शक्ति बढा के लिए :
ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।

परीक्षा में सफलता के लिए :
१ – ॐ नमः श्रीं श्रीं अहं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वत्यै नमः स्वाहा विद्यां देहि मम ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।
२ -जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी, कवि उर अजिर नचावहिं बानी।
मोरि सुधारिहिं सो सब भांती, जासु कृपा नहिं कृपा अघाती॥

हंसारुढा मां सरस्वती का ध्यान कर मानस-पूजा-पूर्वक निम्न मन्त्र का २१ बार जप करे-”

ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः।”

विद्या प्राप्ति एवं मातृभाव हेतु:
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥
अर्थातः- देवि! विश्वकि सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो।

उपरोक्त मंत्र का जप हरे हकीक या स्फटिक माला से प्रतिदिन सुबह १०८ बार करें, तदुपरांत एक माला जप निम्न मंत्र का करें।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नमः।

देवी सरस्वती के अन्य प्रभावशाली मंत्र

एकाक्षरः

“ऐ”।

द्वियक्षर:

१ “आं लृं”,।
२ “ऐं लृं”।

त्र्यक्षरः

“ऐं रुं स्वों”।

चतुर्क्षर:

“ॐ ऎं नमः।”

नवाक्षरः

“ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः”।

दशाक्षरः

१ – “वद वद वाग्वादिन्यै स्वाहा”।
२ – “ह्रीं ॐ ह्सौः ॐ सरस्वत्यै नमः”।

एकादशाक्षरः

१ – “ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।
२ – “ऐं वाचस्पते अमृते प्लुवः प्लुः”
३ – “ऐं वाचस्पतेऽमृते प्लवः प्लवः”।

एकादशाक्षर-चिन्तामणि-सरस्वतीः

“ॐ ह्रीं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।

एकादशाक्षर-पारिजात-सरस्वतीः

१ – “ॐ ह्रीं ह्सौं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।
२ – “ॐ ऐं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।

द्वादशाक्षरः

“ह्रीं वद वद वाग्-वादिनि स्वाहा ह्रीं”

अन्तरिक्ष-सरस्वतीः

“ऐं ह्रीं अन्तरिक्ष-सरस्वती स्वाहा”।

षोडशाक्षरः

“ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा”।

अन्य मंत्र
• ॐ नमः पद्मासने शब्द रुपे ऎं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्दादिनि स्वाहा।
• “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा”।
• “ऐंह्रींश्रींक्लींसौं क्लींह्रींऐंब्लूंस्त्रीं नील-तारे सरस्वति द्रांह्रींक्लींब्लूंसःऐं ह्रींश्रींक्लीं सौं: सौं: ह्रीं स्वाहा”।
• “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वाग्वादिनि भगवती अर्हन्मुख-निवासिनि सरस्वति ममास्ये प्रकाशं कुरु कुरु स्वाहा ऐं नमः”।
• ॐ पंचनद्यः सरस्वतीमयपिबंति सस्त्रोतः सरस्वती तु पंचद्या सो देशे भवत्सरित्।

उपरोक्त आवश्यक मंत्र का प्रतिदिन जाप करने से विद्या की प्राप्ति होती है।

नोट :
स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ कपडे पहन कर मंत्र का जप प्रतिदिन एक माला करें।
ब्राह्म मुहूर्त मे किये गए मंत्र का जप अधिक फलदायी होता हैं। इस्से अतिरीक्त अपनी सुविधाके
अनुशार खाली में मंत्र का जप कर सकते हैं।
मंत्र जप उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके करें।
जप करते समय शरीर का सीधा संपर्क जमीन से न हो इस लिए ऊन के आसन पर बैठकर जप

करें। जमीन के संपर्क में रहकर जप करने से जप प्रभाव हीन होते हैं।

विद्या प्राप्ति में रुकावट के योग

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विद्या प्राप्ति में रुकावट के योग
 

शिक्षा प्राप्ति में बाधा के योग

जन्म कुंडली में उच्च शिक्षा का योग होने पर भी कभी-कभी उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता। इस का कारण हैं, शिक्षा प्राप्ति में रुकावट करने वाले योग।
विद्वानो के मत से ज्यादातर शिक्षा प्राप्ति के समय यदि राहु की महादशा चल रही हो पढ़ाई में रुकावट आती है।
यदि पंचमेश 6, 8 या 12 वें भाव में स्थित हो या किसी अशुभ ग्रह के साथ स्थित हो या अशुभ ग्रह से द्दष्ट हो, तो जातक उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर या उसकी शिक्षा प्राप्ति बाधा आती हैं।
यदि जातक में गुरु या बुध 3, 6, 8 या 12 वें भाव में स्थित हो, शतृगृही हो, तो शिक्षा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करता है।

फलदीपिका के अनुशार

वित्तम् विद्या स्वान्नपानानि भुक्तिम् दक्षाक्ष्यास्थम् पत्रिका वाक्कुटुबम्म॥
(फलदीपिका अध्याय १ श्लोक १०)

अर्थातः धन, विद्या, वाणी एवं स्वयं के अधिकार की वस्तु इत्यादि का विचार द्वितीय भाव से करना चाहिए।

यदि जन्म कुंडली में अष्टम भाव में नीच ग्रह, अशुभ, पापी या क्रूर ग्रह स्थित होने से भी जातक कई बार उच्च शिक्षा की प्राप्ति कर लेता हैं। इस स्थिती में जातक को दूरस्थ स्थान या विदेश में विद्याध्ययन के योग बनते हैं।
यदि जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अशुभ ग्रहो का प्रभाव हो, तो विद्या प्राप्ति में बाधा हो सकती हैं।
यदि जन्म कुंडली में सूर्य, शनि एवं राहु की अलग-अलग द्रष्टी ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में अकेला गुरु द्वितीय भाव में स्थित हो, तो ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में अकेला शुक्र द्वितीय ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में शुक्र अष्टम भाव में स्थित हो कर द्वितीय भाव ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में राहु 6,8 या 10 भाव में स्थित हो, तो जातक का ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में शनि पंचम भाव या अष्टम भाव में स्थित हो, तो भी शिक्षा अधुरी रहती हैं ……………..>>

शिक्षा में अवरोध उत्पन्न करने वाले कारण

यदि जातक में राहु अगर पंचम भाव में पंचमेश से युत या दृष्ट हो और ……………..>>
यदि जातक में पंचमेश द्वादश भाव में स्थित होकर अस्त हो या नीच राशि में स्थित हो, या अन्य ……………..>>यदि जातक में द्वितीय भाव का स्वामी नवम भाव में निर्बल हो, पाप पीड़ित हो तो ……………..>>
यदि जातक में बुध और गुरु निर्बल हो, त्रिक भाव में हो, अस्त हो, अशुभ ग्रह से पीड़ित हो……………..>>
विद्या अध्ययन की आयु में यदि अशुभ ग्रह की महादशा, अंतरदशा, शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव ……………..>>
शनि पंचम भाव से त्रिकोण में गोचर कर रहा हो या गुरु पंचमेश से त्रिकोण में गोचर ……………..>>
यदि जातक में पंचम भाव, पंचमेश, तृतीयेश, बुध या गुरु पर एकाधिक ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो, तो विद्या प्राप्ति में व्यवधान आता हैं और ……………..>>

विद्या प्राप्ति में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति के लिये ग्रह शांति के उपाय करने चाहिए।

नोट : यदि ग्रहों की अशुभ स्थिति के कारण या अन्य कारणों से विद्या प्राप्ति में बाधा आ रही हो अथवा स्मरण शक्ति कमजोर हो या एकाग्रता की कमी हो, सरस्वती कवच एवं यंत्र का प्रयोग करने से लाभ प्राप्त होता हैं।

शिक्षा प्राप्ति की बाधाएं दूर करने के उपाय
यदि जन्म कुंडली में उच्च शिक्षा का योग हो, किंतु विद्याध्ययन के समय अशुभ ग्रह की दशा के कारण रुकावटे आने का योग हो या रुकावटे आरही हो, तो संबंधित ग्रह की शांति हेतु ग्रह से संबंधित यंत्र को अपने घर में स्थापित करना लाभदायक होता हैं। ग्रहो के अशुभ प्रभाव को कम करने हेतु अन्य उपायो को भी अपनाया जासकता हैं।
बच्चे को विद्वान बनाने के लिये प्रति बुधवार या पंचमी के दिन चांदी की शलाका को मधु में डुबाकर बच्चे की जिह्वा(जीभ) पर “ऎं” मंत्र लिखे।

लग्न के अनुशार रत्न धारण से विद्या प्राप्ति
मेष लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु माणिक्य धारण करना चाहिये।
वृष लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पन्ना धारण करना चाहिये।
मिथुन लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु हीरा धारण करना चाहिये।
कर्क लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु मूंगा धारण करना चाहिये।
सिंह लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पीला पुखराज धारण करना चाहिये।
कन्या लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु नीलम धारण करना चाहिये।
तुला लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु नीलम धारण करना चाहिये।
वृश्चिक लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पीला पुखराज धारण करना चाहिये।
धनु लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु मूंगा धारण करना चाहिये।
धनु लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु हीरा धारण करना चाहिये।
कुंभ लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पन्ना धारण करना चाहिये।
मीन लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु मोती धारण करना चाहिये।

परीक्षा में मनोनुकूल फल प्राप्त करने हेतु तो किसी मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर अगले कृष्ण पक्ष की पंचमी तक अर्थात 15 दिन तक गणेश जी को १०८ दूर्वा ……………..>>
वसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की पूजा करने के बाद स्फटिक माला ……………..>>
गुरुवार के दिन धर्मिक स्थान पर ……………..>>
बुधवार एवं गुरुवार को किसी जरुर मंद बच्चे को शिक्षा से सांबंधित सहायता करने से लाभ प्राप्त होता हैं।

विद्या प्राप्ति हेतु श्री गणेशजी के द्वादश नाम का स्मरण करने से शिक्षा से सांबंधित संमस्याएं दूर होती हैं। अतः प्रतिदिन स्नान कर स्वच्छ कपडे पहन कर गणेशजी की प्रतिमा या चित्र के सामने इस श्लोक का अपनी श्रद्धा के अनुशार पाठ करें।

शुक्लाम्बरं धरंदेव शशिवर्णं चतुर्भुजम। प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वाविनोपशान्तये॥
सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लंबोदरश्च विकटो विन नाशो विनायकः॥
धूम्र केतुर्गणाध्यक्षो भाल चंद्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानियः पठेच्छुणयादडिप॥

प्रतिमाह दोनो पक्षो की गणेश चतुर्थी को गणेश जी की विधिवत पूजा-अर्चना करके ॐ गं गणेशाय नमः या गं गणेपतये नमः मंत्र का १०८ बार जप करने से विद्या लाभ होता हैं।

अन्य उपाय
सरस्वती से संबंधित मंत्र का नियमित जप करने से विद्या में सफलता के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करना चाहिए।

“ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वागवादिनि भगवती अर्हनमुख निवासिनि सरस्वती ममास्ये प्रकाशं कुरू कुरू स्वाहा ऐं नमः।”

इसके साथ ही बुद्धि के प्रमुख देवता प्रथम पूज्य विध्न विनाशक श्री गणेशजी का ध्यान करने से विद्या और बुद्धि का विकास होता हैं एवं विद्याअध्ययन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

यदि जातक में शिक्षा से संबंधित ग्रह शुभ हो कर निर्बल हो और अपना शुभ प्रभाव देने में असमर्थ हो, तो उसे बल प्रदान करने के लिए उससे संबंधित ग्रह का रत्न भी धारण किया जा सकता है।
यदि जातक का की रुचि शिक्षा के प्रति कम हो, तो उसे ……………..>>

यदि जातक का की रुचि शिक्षा के प्रति कम हो, स्मरण शक्ति एवं तर्क शक्ति बढाने के लिए ……………..>>

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विद्या प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके)

विद्या प्राप्ति प्रयोग, परिक्षा में सफलता के उपाय, परिक्षा में सफलता के टोटके, परिक्षा में सफलता के लिये यंत्र-मंत्र-तंत्र से उपाय, परिक्षा में उत्तकिर्ण होने के सरल उपाय, विद्या प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके), વિદ્યા પ્રાપ્તિ કે વિલક્ષણ ઉપાય(ટોટકે), ವಿದ್ಯಾ ಪ್ರಾಪ್ತಿ ಕೇ ವಿಲಕ್ಷಣ ಉಪಾಯ(ಟೋಟಕೇ), வித்யா ப்ராப்தி கே விலக்ஷண உபாய(டோடகே), విద్యా ప్రాప్తి కే విలక్షణ ఉపాయ(టోటకే), വിദ്യാ പ്രാപ്തി കേ വിലക്ഷണ ഉപായ(ടോടകേ), ਵਿਦ੍ਯਾ ਪ੍ਰਾਪ੍ਤਿ ਕੇ ਵਿਲਕ੍ਸ਼ਣ ਉਪਾਯ(ਟੋਟਕੇ), ৱিদ্যা প্রাপ্তি কে ৱিলক্শণ উপায(টোটকে), ବିଦ୍ଯା ପ୍ରାପ୍ତି ବିଲକ୍ଷଣ ଉପାଯ (ଟୋଟକେ), vidyA prApti ke vilakSaN upAy(ToTake), Singular Remedy of knowledge achievement (Totkae), Remedy For Excellent Education, Remedy For Excellent Study, Remedy For Excellent knowlage, Singular Astrology Remedy of knowledge achievement (Totkae), Astrology Remedy For Excellent Education, Astrology Remedy For Excellent Study, Astrology Remedy For Excellent knowlage, Lal Kitab Astrology Remedy for Excellent Education, Red Astrology Remedy for Excellent Education, Yantra, Mantra Tantra Remedy for Excellent Education,
विद्या प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके)
• पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या की प्राप्ति होती है।
• विद्वानो के मत से विद्या प्राप्ति हेतु ४ मुखी एवं ६ मुखी रूद्राक्ष लाल धागे मे धारण करने से व्यक्ति की बुद्धि तीव्र ओर कुशाग्र एवं विद्या, ज्ञान, उत्तम वाणी की प्राप्त होकर जीवन मे रचनात्मकता आति है
• पढाई मेज पर स्फटिक का श्री यंत्र स्थापीत करने से स्मरण शक्ति तीव्रे होती हैं एवं खराब विचार दूर होकर उत्तम प्रकार की चिंताधारा उत्पन्न होती हैं, एवं मां सरस्वती और लक्ष्मी का आशिर्वाद सदैव बना रेहता हैं।
• अपने पूजा स्थान पर सरस्वती यंत्र स्थापीत कर प्रति दिन धूप- दीप करने से मां सरस्वती का आशिर्वाद एवं कृपा सदैव बनी रेहती हैं।
• पढाई करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख कर कर पढाई करें।
• पढाई करते समय स्फेद या हलके रंग के कपडो का चुनाव करे ताकी ……….
• पढाई की किताब में मौली का टुकडा रखने से ज्ञान एवं विद्या ……………
• किताब में मोर के पंख रखने से लाभ होता हैं।
• ज्ञान मुद्रा का प्रति-दिन मात्र ५ मिनिट प्रयोग करने से स्मरण शक्ति …………….
• पढाई करने वाली मेज(टेबल) पर शीशा नहीं रखना चहीये। शीशा रखने से मानसिक ……………
• पढाई के समय अपने पीछे खाली जगा न रखे अर्थात ठोस दीवार की और पीठ कर ……………
• अपनी बायीं (राईट हेंड) और पानी से भरा ग्लास रखें …………..
• मेज(टेबल) पर यथा संभव कम सामग्री रखे उस्से एकाग्रता …………..
• मेज(टेबल) को दीवार से थोडा दूर रखे सटाकर ………….
• रात को सोने से पूर्व चांदी के ग्लास मे पानी भरकर ……….
• भोजन करते समय चांदी के बरतनो का उपयोग करने ………
• बच्चो को सोमवार का व्रत कर शिव मंदिर में ………….
• बुध कि होरा विद्या-बुद्धि अर्थात पढाई के ……..
• विद्वानो के मत से काँसे के बर्तन में ………..
• अंजीर को बादाम एवं पिस्ता के …………
• प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने और सूर्य को…………..
• लोहे के बर्तन में भोजन करने से बुद्धि का ………..
• अष्टमी को नारियल ………….
• स्मरण शक्ति को प्रबल करने के लिये ……….
स्मरण शक्ति को प्रबल करने के लिये ………………………..>>

अन्य अचूक प्रभावशाली उपाय

• बुधवार के दिन मंत्र सिद्ध पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त सरस्वती कवच को धारण करें।
• मंत्र सिद्ध पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त चार और छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने से भी स्मरण शक्ति बढती हैं।
• शुद्ध पन्ने (Emrald) रत्न को अभिमंत्रीत कर धारण करने से लाभ होता हैं।
• अपनी पूजन स्थान में या पढाई करने वाले स्थान या रुम में मंत्र सिद्ध पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त सरस्वती यंत्र स्थापीत करने से लाभ प्राप्त होता हैं।
• हरे मरगच या हकीक की माला………….
• परीक्षा में उत्तीर्ण होने हेतु लाल रंग की कलम (पैन) लें ………..
• मन कि एकाग्रता हेतु प्रतिदिन प्राणायाम करें। विद्यारंभ करने से पूर भी प्राणायाम करना लाभ प्रद होता हैं। प्राणायाम से शरीर में शक्ति का संचार होता हैं और स्फूर्ति उत्पन्न होती हैं।
सोने से पूर्व सरस्वती मंत्र का जप करे एवं सोते समय भी सरस्वती मंत्र का जप करते रहें।
परिक्षा के लिये प्रस्थान करेने से पूर्व गणेश जी के निम्न मंत्र का ध्यानपूर्वक जप करके घर से बाहर निकले करें।
ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः।
निर्विघ्नम्कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा॥

प्रश्न पत्र पर पर कुछ भी लिखने से पूर्व उपर छोटे अक्षरो में ………………….

उपरोक्त प्रयोग के करने से अवश्य लाभ प्राप्त होता हैं।
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ज्योतिष में विद्या प्राप्ति एवं उच्च शिक्षा के योग

ज्योतिष में विद्या प्राप्ति एवं उच्च शिक्षा के योग, જ્યોતિષ મેં વિદ્યા પ્રાપ્તિ એવં ઉચ્ચ શિક્ષા કે યોગ, ಜ್ಯೋತಿಷ ಮೇಂ ವಿದ್ಯಾ ಪ್ರಾಪ್ತಿ ಏವಂ ಉಚ್ಚ ಶಿಕ್ಷಾ ಕೇ ಯೋಗ, ஜ்யோதிஷ மேம் வித்யா ப்ராப்தி ஏவம் உச்ச ஶிக்ஷா கே யோக, జ్యోతిష మేమ్ విత్యా ప్రాప్తి ఏవమ్ ఉచ్చ శిక్షా కే యోక, ജ്യോതിഷ മേമ് വിത്യാ പ്രാപ്തി ഏവമ് ഉച്ച ശിക്ഷാ കേ യോക, ਜ੍ਯੋਤਿਸ਼ ਮੇਂ ਵਿਦ੍ਯਾ ਪ੍ਰਾਪ੍ਤਿ ਏਵਂ ਉੱਚ ਸ਼ਿਕ੍ਸ਼ਾ ਕੇ ਯੋਗ, ଜ୍ଯୋତିଷ ମେ ବିଦ୍ଯା ପ୍ରାପ୍ତି ଏବଂ ଉଚ୍ଚ ଶିକ୍ଷା ୟୋଗ, jyotis me vidya prapti evam ucc siksa ke yog, education achievement and higher education Yoga In astrology, higher education Yoga In vedic astrology, higher education Yoga In lal kitab, higher education Yoga In red astro, higher education Yoga In indian astrology, higher education Yoga In horoscope, higher education Yoga In kundli, higher education Yoga Inkunadli, higher education Yoga In zodiac, higher education Yoga in janm patrika, higher education Yoga In janam kundli, higher education Yoga Inpatrika, higher education Yoga In horoscope,
ज्योतिष में विद्या प्राप्ति एवं उच्च शिक्षा के योग
जन्म कुंडली का अध्ययन कर मालूम किया जा सकता है कि जातक में उच्च शिक्षा का योग हैं नहीं हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुशार विद्या का विचार जन्म कुंडली में मुख्यतः पंचम भाव से किया जाता हैं। विद्या एवं वाणी का निकटस्थ संबध होता हैं। अतः विद्या योग का विचार करने के लिए द्वितीय भाव भी सहायक होता हैं।
चन्द्र और बुध की स्थिति से विद्या प्राप्ति के लिये उपयोगी जातक का मानसिक संतुलन एवं मन की स्थिती का आंकलन किया जाता हैं। कई विद्वानो के अनुशार बुध तथा शुक्र की स्थिति से व्यक्ति की विद्वता एवं सोचने की शक्ति का विचार किया जाता है। दशम भाव से विद्या से अर्जित यश का विचार किया जाता है।
जातक को उच्च शिक्षा में सफलता प्राप्त होगी या नहीं। यदि अवरोध उत्पन्न करने वाले योग हैं तो उसे दूर करने के उपाय क्या हैं?
आज के आधुनिक युग में स्वयं के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा की भूमिका अहम होती हैं। आज के दौर में चाहे स्त्री हो या पुरुष शिक्षा सब के लिए आवश्यक होती है।
विद्वानो के मत से ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार शिक्षा का मुख्य विचार द्वितीय एवं पंचम भावों तथा इन भाव के स्वामी ग्रह की स्थिति से किया जाता हैं। जातक की वाणी एवं स्मरण शक्ति का विचार बुध एवं ज्ञान का विचार गुरु से किया जाता हैं।
 
उच्च शिक्षा के योग
विद्वानो के अनुशार द्वितीय भाव में बृहस्पति और बुध……………..>>
यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र ……………..>>
यदि बुध, गुरु और शनि ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में बुध एवं गुरु ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में बुध का संबंध 2, 3, 4 और ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में चतुर्थेश 6, 8 या 12 वें भाव में स्थित हो या नीच राशिस्थ, अस्त हो या शत्रु राशि में स्थित हो एवं चतुर्थ भाव के कारण ……………..>>
यदि द्वितीय भाव का स्वामी या गुरु केंद्र ……………..>>
यदि पंचम भाव में बुध स्थित हो या बुध की पंचम ……………..>>
यदि पंचम भाव में गुरु और शुक्र ……………..>>
यदि पंचम भाव का स्वामी पंचम भाव में ही गुरु या……………..>>
यदि केंद्र या त्रिकोण में बुध, गुरु एवं शुक्र की ……………..>>
यदि जातक में गुरु का संबंध द्वितीय, चतुर्थ व नवम भाव से हो, या चतुर्थेश का नवमेश ……………..>>
 
विद्या प्राप्ति में सफलता के योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुशार जातक में लग्न, लग्नेश, चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और बुध की भूमिका विद्याध्ययन में महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इस भाव एवं भाव के स्वामी से बुध का शुभ संबंध जातक को विद्या प्राप्ति में अवश्य सफलता प्रदान करता हैं।
यदि जातक में शनि का प्रभाव गुरु, द्वितीय भाव, द्वितीयेश, चतुर्थ भाव, चतुर्थेश पर हो, जातक को विद्या प्राप्ति में सफलता प्रदान करता हैं।
गुरु एवं शनि की नवम भाव में युति, जातक को ……………..>>
यदि जातक में पंचम भाव में शुक्र ……………..>>
यदि जातक में नवम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित……………..>>
यदि जातक में एकादश भाव में बुध और गुरु की युति हो या गुरु और शुक्र की की ……………..>>
यदि जातक में द्वितीय भाव में गुरु या शुक्र ……………..>>
यदि जातक में पंचम भाव का स्वामी शुभ केंद्र ……………..>>
यदि जातक में लग्न का स्वामी लग्नेश उच्च स्थिती ……………..>>
यदि जातक में पंचमेश नवम या दशम भाव ……………..>>
यदि जातक में पंचम भाव में शुभ ……………..>>
यदि जातक में पंचमेश की दशम ……………..>>
यदि जातक में गुरु केंद्र स्थान में स्थित हो, तो जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है।
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गणेश चतुर्थी व्रत (विनायकी चतुर्थी) 7-फरवरी-2011

विनायकी चतुर्थी 7- February- 2011 विक्रम संवत 2067
गणेश चतुर्थी व्रत (विनायकी चतुर्थी) 7-फरवरी-2011

गणेश चतुर्थी व्रत के बारें में अधिक जानकारे हेतु यहां क्लिक करें

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विद्याध्ययन आवश्यक क्यों?

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विद्याध्ययन आवश्यक क्यों?
भारतीय शास्त्रकारो ने विद्या विहीन मनुष्य की तुलना पशु से की हैं। विद्या एवं ज्ञान ही मनुष्य की विशेषता हैं। पशुओं की तुलना में मनुष्य में ज्ञान शक्ति के कारण कुछ विशेषता हैं। परंतु अज्ञानी मनुष्य का जीवन निश्चय रुप से ही पशुओं से गया-गुजरा हैं। अज्ञानी मनुष्य को अपने जीवन में किसी दिशा में प्रगति करने का अवसर नहीं मिलता हैं।
व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह की महत्वपूर्ण आवश्यकता भी कठिनाई से पूरी कर पाता हैं। उसे अनेक अभावों, असुविधा और आपत्तियों से भरी जिन्दगी जीनी पड़ सकती हैं। जिस व्यक्ति में ज्ञान की कमी होती हैं, उसको जीवन के हर क्षेत्र में सर्वत्र अभाव होते रहते हैं। व्यक्ति की उचित प्रगति के सभी रास्ते उसे बंध से प्रतित होते हैं।
कोई भी मनुष्य अपने जीवन में विद्या से विहीन एवं अज्ञानी न रहें। इसलिए हमारे विद्वान ऋषीमुनीयों ने प्राचिन काल से ही हर व्यक्ति के लिये उपयोगी विद्या प्राप्त करने की आवश्यकता एवं अनिवार्य बताई है।
मनुष्य को प्राप्त होने वाली विद्या उसके ज्ञान का मुख्य आधार हैं। इसलिये जिस व्यक्ति को विद्या नहीं आती उसे ज्ञान प्राप्ति से वंचित रहना पड़ता हैं।
हमारे शास्त्रो के अनुशार व्यक्ति को जीवन में कष्ट और क्लेशों से छुटकारा केवल ज्ञान से ही मिल सकता है। क्योकी अज्ञानी मनुष्य तो जटिल बंधनो में ही बँधा रहता हैं। उन बंधनो से बाहर निकलने का उचित प्रयास नहीं कर पाता और उसका मन, शरीर के बंधनो में पड़े हुए बंदी की भांति कष्ट भोगने पड़ते हैं। व्यक्ति ज्ञान के अभाव के कारण कष्टो को सहता ही रहता हैं और उसे अंधकार में भटकना ही पड़ता हैं, व्यक्ति को सही मार्ग ज्ञान प्रकाश की प्राप्ति होने पर ही मिलता हैं।
सृष्टी के हर पशु-पक्षि-प्राणी को खाने, सोने, बच्चे करने आदि शारीरिक प्रवृतियों को करने का ज्ञान प्रकृति द्वारा प्राप्त हैं। इन प्रवृति या क्रियाओं के करने से किसी को ज्ञानी नहीं कहा जा सकता उसे अज्ञानी ही कहा जाएगा। क्योकि हर देहधारी जीव में सांस लेने, आहार पचाने, जमाने और खर्चने की प्रमुख जानकारियाँ किसी ना किसी रूप में स्वतः ही बिना प्रयास के ही मिली हुई होती हैं। जो जीव इतना ही जानते हैं। वस्तुतः वे देहीक कियाओं की जानकारी तक ही सीमित हैं। ज्ञान वह हैं, जिस्से मनुष्यने अब तक संशोधन, परिवर्तन द्वारा उपलब्धियों को प्राप्त कर मानव ने समग्र विश्व का विकास किया हैं, यह विकसिता ही मनुष्य का ज्ञान हैं।
 
शिक्षण से व्यक्तित्व का विकास होता हैं।
जीवन में व्यक्ति को स्वाभाविक संस्कार एवं वंश परम्परा से चतुरता तो एक सीमा तक मिली हुई हैं, परंतु व्यक्ति का विकास उसके प्रयत्नों से ही संभव होता हैं। ज्ञान के बीज इश्वरीय कृपा से मानवीय चेतना में बचपन से ही विद्यमान हो जाते हैं। परंतु उस ज्ञान का विकास हर व्यक्ति नहीं कर पाता हैं। उसका विकार व्यक्ति के आस-पास की अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितीयों के आधार पर होता हैं। विद्वानो के मत से बिना दूसरों से कुछ सिखे मनुष्य की बुद्धिमत्ता किसी काम की नहीं हैं।
जैसे किसी छोटे बच्चे को जिन परिस्थितियों में रहना पड़ता हैं, बच्चा उसी प्रकार परिस्थितियों के अनुरुप ढल जाता है।
जेसे किसी अज्ञानी के बच्चे और पढे-लिखे सुसंस्कृत के बच्चे में जो अन्तर देखा जाता हैं, वह अंतर बच्चे में जन्मजात नहीं होता वह अंतर परीस्थिती, वातावरण और संगति के प्रभाव से होता है।
जिस व्यक्ति को जीवन में उपयुक्त सुविधायें प्राप्त हो जाती हैं, वह व्यक्ति सुविकसित जीवन जीने की परिस्थियाँ प्राप्त कर लेता हैं। उसी प्रकार जिस व्यक्ति को जीवन में उपयुक्त सुविधा से वंचित रहना पड़ता हैं, वह लोग मानसिक दृष्टि से गई-गुजरी दशा में रह जाते हैं। इस लिये जो व्यक्ति को नीम्न परिस्थियों में पड़ा नहीं रहना है, उन के लिये विद्या अध्ययन करके अपने जीवन में उत्कर्ष की दिशा में आगे बढ़ना संभव हो सकता हैं।
दैनिक दिनचर्या, कुंटुंब एवं सामाजिक परिवेश के संपर्क में रहकर जो सीख, जो ज्ञान प्राप्त होता हैं वह मनुष्य के विकास हेतु नाकाफि हैं अथवा प्राप्त होने वाला ज्ञान सीमित दायरे के कारण बहुत थोड़ा होता हैं। उस थोडे ज्ञान से व्यक्ति के विकास का काम नहीं चल सकता। क्योकि विकास हेतु मनुष्य की अबतक की जो उपलब्धिया हैं, अबतक जिस विशाल ज्ञान का संग्रह किया हैं, उससे भी लाभ उठाना आवश्यक होता हैं। जो सीमित दायरे में या कुंटुंब या परिवेश में प्राप्त होना संभव नहीं हैं। व्यक्ति के विकास का एक ही उपाय हैं, विद्याध्ययन।
क्योकि व्यक्ति के द्वारा कमाया और जमा किया गया धन तो खर्च होता रहता हैं और कष्ट होते रहे हैं, लेकिन व्यक्ति के द्वारा उपार्जित ज्ञान सुरक्षित रहता हैं।
जेसे किसी व्यक्ति के पास तो अल्प ज्ञान होता है, जिससे पेट भरने की आवश्यकता की पूर्ति जा सकती हैं। इस लिये जीवन में विद्याध्ययन अति आवश्यक मानी गई हैं।

सरस्वती उपासना का महत्व

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सरस्वती उपासना का महत्व
हिन्दू धर्म के वैदिक साहित्य में मंत्र उपासना का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। आज के आधुनिक युग में लगातार संशोधित हो रहे वैज्ञानिक शोध से यह सिद्ध हो चूका अनुभूत सत्य की मन्त्रों में अद्भुत शक्ति होती हैं। लेकिन मंत्र की सकारात्मक शक्ति जाग्रह हो इस लिए मंत्र के प्रयोग का उचित ज्ञान, मंत्र की क्रमबद्धता और मंत्र का शुद्ध उच्चारण अति आवश्यक होता हैं।
जैसे भीड में जाते हुए या बैठे हुए व्यक्ति में से जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता हैं। उस व्यक्ति का ध्यान ही ध्वनि की और गति करता हैं। अन्य लोग उसी अवस्था में चल रहे होते हैं या बैठे रहते हैं अथवा विशेष ध्यान नहीं देते हैं। उसी प्रकार सोएं हुए व्यक्तियों में जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता हैं केवल उसी व्यक्ति की निंद्रा भंग होती हैं अन्य लोग सोएं रहते हैं या विशेष ध्यान नहीं देते। उसी प्रकार देवी-देवता के विशेष मंत्र का शुद्ध उच्चारण कर निश्चित देवी-देवता की शक्ति को जाग्रत किया जाता सकता हैं।
देवी सरस्वती हिन्दू धर्म के प्रमुख देवी-देवताओ में एक हैं, जिसे मन, बुद्धि, ज्ञान और कला, की अधिष्टात्री देवी माना जाता हैं। देवी का स्वरुप चन्द्रमा के समान श्वेत उज्जवल, श्वेतवस्त्र धारी, श्वेत हंस पर विराजित, चार भुजाधारी, हाथ में वीणा, पुस्तक, माला लिए हैं और एक हाथ वरमुद्रा में हैं। मस्तक पर रत्न जडित मुगट शोभायमान हैं।
देवी सरस्वती के पूजन से जातक को विद्या, बुद्धि व नाना प्रकार की कलाओं में सिद्ध एवं सफलता प्राप्त होती हैं। सरस्वती ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।
शास्त्रो में देवी सरस्वती को सरस्वती, महासरस्वती, नील सरस्वती कहा गया हैं। देवी सरस्वती की स्तुति ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवराज इन्द्र और समस्त देवगण करते हैं।देवी सरस्वती की कृपा से जड से जड व्यक्ति भी विद्वान बन जाते हैं। हमारे धर्म शास्त्रो में इस के उदाहरण भरे पडे हैं। जिस में से एक उदाहरन कालीदास जी का हैं। देवी सरस्वती का विशेष उत्सव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को अर्थात् वसन्त पंचमी को मनाया जाता हैं।