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Archive for सितम्बर, 2011

मां कूष्माण्डा के पूजन से आयुष्य, यश, बल और बुद्धि की प्राप्ति होती हैं

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चतुर्थ कूष्माण्डा
नवरात्र के चतुर्थ दिन मां के कूष्माण्डा स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। अपनी मंद हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न किया था इसीके कारण इनका नाम कूष्माण्डा देवी रखा गया।
शास्त्रोक्त उल्लेख हैं, कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार हि था। उस समय कूष्माण्डा देवी ने अपने मंद सी हास्य से ब्रह्मांड कि उत्पत्ति कि। कूष्माण्डा देवी सूरज के घेरे में निवास करती हैं। इसलिये कूष्माण्डा देवी के अंदर इतनी शक्ति हैं, जो सूरज कि गरमी को सहन कर सकें। कूष्माण्डा देवी को जीवन कि शक्ति प्रदान करता माना गया हैं।
कूष्माण्डा देवी का स्वरुप अपने वाहन सिंह पर सवार हैं, मां अष्ट भुजा वाली हैं। उनके मस्तक पर रत्न जडि़तमुकुट सुशोभित हैं, जिस्से उनका स्वरूप अत्यंय उज्जवल प्रतित होता हैं। उनके हाथमें हाथों में क्रमश: कमण्डल,  माला, धनुष-बाण, कमल, पुष्प, कलश, चक्र तथा गदा सुशोभित रहती हैं।
मंत्र:
सुरासम्पूर्णकलशंरूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तुमे।।
ध्यान:-
वन्दे वांछितकामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभांअनाहत स्थितांचतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलशचक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बरपरिधानांकमनीयाकृदुहगस्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनांनारू चिकुकांकांत कपोलांतुंग कूचाम्।
कोलांगीस्मेरमुखींक्षीणकटिनिम्ननाभिनितम्बनीम्॥
स्त्रोत:-
दुर्गतिनाशिनी त्वंहिदारिद्रादिविनाशिनीम्।जयंदाधनदांकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्रीजगदाधाररूपणीम्।चराचरेश्वरीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरीत्वंहिदु:ख शोक निवारिणाम्।परमानंदमयीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
कवच:-
हसरै मेशिर: पातुकूष्माण्डेभवनाशिनीम्।हसलकरींनेत्रथ,हसरौश्चललाटकम्॥कौमारी पातुसर्वगात्रेवाराहीउत्तरेतथा।पूर्वे पातुवैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणेमम।दिग्दिधसर्वत्रैवकूंबीजंसर्वदावतु॥
मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति का अनाहत चक्र जाग्रत हो हैं। मां कूष्माण्डाका के पूजन से सभी प्रकार के रोग, शोक और क्लेश से मुक्ति मिलती हैं, उसे आयुष्य, यश, बल और बुद्धि प्राप्त होती हैं।
>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2010

नवरात्री में संपन्न करें नवार्णमन्त्रसाधना

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नवरात्री में संपन्न करें नवार्णमन्त्रसाधना
नवार्णमन्त्रसाधना
लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
विनियोगः
अस्यश्रीनवार्णमंत्रस्यब्रह्माविष्णुमहेश्वराऋषिः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंदांसि, महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यःदेवताः, नंदजाशाकुंभरीभीमाःशक्तयः, रक्तदंतिकादुर्गाभ्रामयोबीजानि, ह्रौंकीलकम्, अग्निवायुसूर्यास्तत्वानि, कार्यनिर्देशजपेविनियोग।
नवार्णमन्त्र:
ऐंह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चे॥
नवार्णभेदमन्त्र:
शास्त्रोंमेंनवार्णमन्त्रकोअपनेआपमेंअत्यन्तसिद्धएवंप्रभावयुक्तमानागयाहैं।नवार्णमन्त्रकोमन्त्रऔरतन्त्रदोनोमेंसमानरुपसेप्रयोगकियाजाताहैं।
नवार्ण मन्त्र केशीघ्रप्रभाविप्रयोगआपकेमार्गदर्शनहेतुदियेजारहेहैं।
चेतावनी:
नवार्णमन्त्रकाप्रयोगअतिसावधानीसेएवंयोग्यगुरु, विद्वानब्राह्मणअथवाजानकारकीसलाहसेकरनाचाहिए।
नवार्णमोहनमन्त्र:
नवार्णमोहनमन्त्रकेबारहलाखजपकरनेकाविधानहैं।इसप्रयोगकोकरनेहेतुसातकुओंयानदियोंकाजलताम्रकलशमेंलेकरउसमेंआमकेपत्तेडालकरनित्यउसीपानीसेस्नानकरनाचाहिए।ललाटपरपीलेचन्दनकातिलककरनाचाहिएऔरशरीरपरपीलेरंगकेवस्त्रहीधारणकरनेचाहिएऔरपीलेरंगकेआसनकाप्रयोगकरनाचाहिए।साधककोपश्चिमकीतरफमुंहकरकेबैठनाचाहिए।बारहलाखमन्त्रजपनेसेयहकार्यसिद्धहोताहैं।
नवार्णमोहनमन्त्र:
क्लींक्लींऐंह्रींक्लींचामुण्डायैविच्चे (अमुकं) क्लींक्लींमोहनम्कुरुकुरुक्लींक्लींस्वाहा।
***
नवार्णउच्चाटनमन्त्र:
नवार्णउच्चाटनमन्त्रके……………..>>
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नवार्णवशीकरणमन्त्र:
इसप्रयोगकोबीसदिनोमेंसंपन्नकरनेकाविधानहैं।नदी, तालाबयाकुएंकेनवार्णउच्चाटनमन्त्रके……………..>>
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नवार्णस्तंभनमन्त्र:
इसप्रयोगमेंसाधककोपूर्वनवार्णउच्चाटनमन्त्रके……………..>>
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नवार्णविद्वेषणमन्त्र:
इसप्रयोगमेंसाधककोउत्तरदिशाकीतरफमुंहकरकेबैठनाचाहिए।तथाकालेरंगका……………..>>
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नवार्णमहामन्त्र:
इसमन्त्रकेउच्चारणमात्रसेदेवीमांप्रसन्नहोतीहैं।यहसंपूर्णनवार्णमहामंत्रहैं।……………..>>
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संपूर्णलेखपढनेकेलियेकृप्यागुरुत्वज्योतिषपत्रिकाअक्टूबर2011 काअंकपढें
इस लेख को प्रतिलिपिसंरक्षण (Copy Protection) के कारणो से यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।

>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2011

मां ब्रह्मचारिणी के पूजन अनंत फल कि प्राप्ति होती

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द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं।क्योकि ब्रह्म काअर्थ हैं तप। मां ब्रह्मचारिणी तप का आचरण करने वाली भगवती हैं इसी कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
शास्त्रो में मां ब्रह्मचारिणीको समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया हैं।  शास्त्रो में ब्रह्मचारिणी देवी केस्वरूप का वर्णन पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत दिव्य दर्शाया गया हैं।    Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने उनके दाहिने हाथ में अष्टदल कि जप माला एवंबायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता हैं।शक्ति स्वरुपा देवी ने भगवान शिवको प्राप्त करने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर तपस्या रत रहीं और 3000 साल तक शिव कि तपस्या सिर्फपेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर कि, उनकी इसी कठिन तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मंत्र:
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।
स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्।ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनीशांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
कवच:-  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरीषोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को अनंत फल कि प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति में  तप, त्याग, सदाचार, संयम जैसे सद् गुणों कि वृद्धि होती हैं।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2010

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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर– 2011 में प्रकशित लेख
आद्य शक्ति विशेष
अनुक्रम
नवरात्र विशेष
नवरात्र में मां दुर्गा के नवरुपोंकिउपासनाकल्याणकारी हैं
6
मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?
7
शारदीयनवरात्रव्रतसे सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं
8
कैसे करें नवरात्रव्रत?
9
देवी आराधना से अभिष्ट कार्यो की सिद्धि हेतु
11
आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान
12
सरल विधि-विधान से शारदीयनवरात्रव्रतउपासना
13
नवरात्र स्पेशल घट स्थापना विधि
14
नवार्ण मंत्र से होती हैं नवग्रह शांति
18
दुर्गाष्टाक्षर मन्त्र साधना
22
कुमारी पूजन से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
23
माता के 52 शक्ति पीठ
26
नवार्ण मन्त्र साधना
20
दीपावली विशेष
धन तेरस शुभ मुहूर्त (24 अक्तूबर, 2011)
47
दीपावली पूजन मुहूर्त (26-अक्तूबर-2011)
48
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु करें राशि मंत्र का जप
53
लक्ष्मी प्राप्ति के सरल उपाय 
54
लक्ष्मी मंत्र
56
दीप जलाने का महत्व क्या हैं?
63
धनत्रयोदशी पर यम-दीपदान अकालमृत्यु को दूर करता हैं
66
धनत्रयोदशी पर यमदीपदान क्यों किया जाता हैं?
68
दीपावली के दिन कैसे करें बहीखाता तुला पूजन?
69
दीपावली का महत्व और लक्ष्मी पूजन विधि
70
श्री धनवंतरि व्रत कथा
71
सप्त श्री का चमत्कार
74
स्फटिक श्रीयंत्र का पूजन
75
मंत्र एवं स्तोत्र
दुर्गा चालीसा
32
श्रीकृष्ण कृत देवी स्तुति,
33
ऋग्वेदोक्त देवी सूक्तम्,
33
सप्‍तश्र्लोकी दुर्गा,
34
दुर्गा आरती,
34
सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्‌,
35
भवान्यष्टकम्‌,
36
क्षमा-प्रार्थना,
36
दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्,
37
विश्वंभरी स्तुति,
38
महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्,
39
गुप्त सप्तशती,
41
दुर्गाष्टकम्‌,
35
सर्व ऐश्वर्य प्रद-लक्ष्मी-कवच
77
महालक्ष्मी कवच
78
महालक्ष्मी स्तुति
79
श्री कनकधारा स्तोत्र
80
श्री लक्ष्मी चालीसा
81
श्री सूक्त
82
धनलक्ष्मी स्तोत्र
82
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र
83
देवकृत लक्ष्मी स्तोत्रम्
83
हमारे उत्पाद
दुर्गा बीसा यंत्र
6
मंत्र सिद्ध दैवी यंत्र सूचि
10
मंत्रसिद्ध लक्ष्मी यंत्रसूचि
10
गणेश लक्ष्मी यंत्र
13
भाग्य लक्ष्मी दिब्बी
17
द्वादश महा यंत्र
21
शादी संबंधित समस्या
37
मंत्र सिद्ध गणेश यंत्र
49
मंगल यंत्र से ऋण मुक्ति
50
मंत्र सिद्ध दुर्लभ सामग्री
55
सर्व कार्य सिद्धि कवच
57
जैन धर्मके विशिष्ट यंत्रोसूची
58
घंटाकर्ण महावीर सर्व सिद्धि महायंत्र
59
अमोद्य महामृत्युंजय कवच
60
राशी रत्न एवं उपरत्न 
60
श्रीकृष्ण बीसा यंत्र/ कवच
61
राम रक्षा यंत्र
62
मंत्र सिद्ध रूद्राक्ष
65
मंत्रसिद्ध स्फटिक श्री यंत्र
67
लक्ष्मी यंत्र
74
कनकधारा यंत्र
80
राशि रत्न
88
मंत्र सिद्ध सामग्री
94
सर्व रोगनाशक यंत्र/
101
मंत्र सिद्ध कवच
103
YANTRA
104
GEMS STONE
106
स्थायी लेख
संपादकीय
4
पति-पत्नी में कलह निवारण हेतु
22
शरद पूर्णिमा (11-अक्टूबर-2011)
44
कोजागरी पूर्णिमा (11-अक्टूबर-2011)
45
दुर्वा पूजनमें रखे सावधानियां
45
करवा चौथ व्रत (15-अक्टूबर-2011)
46
नये कपडे और ज्योतिष
50
मासिकराशिफल
84
अक्टूबर 2011मासिक पंचांग
89
अक्टूबर-2011 मासिक व्रत-पर्व-त्यौहार
 91
अक्टूबर 2011विशेष योग
 97
दैनिकशुभ एवं अशुभ समय ज्ञानतालिका
97
दिनरातकेचौघडिये
98
दिनरात कि होरासूर्योदय से सूर्यास्त तक
99
ग्रह चलन अक्टूबर2011
100
सूचना
108
हमाराउद्देश्य
110
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शारदीय नवरात्र व्रत से सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।

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लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
नवरात्र को शक्तिकीउपासनाकामहापर्व माना गया हैं।मार्कण्डेयपुराण केअनुशारदेवी माहात्म्यमेंस्वयंमां जगदम्बाकावचनहैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

शरत्कालेमहापूजाक्रियतेयाचवार्षिकी।
तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तोधनधान्यसुतान्वित: 
मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिनसंशय:॥ Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

अर्थातः शरदऋतुकेनवरात्रमेंजब मेरीवार्षिकमहापूजाहोती हैं, उसकाल में जोमनुष्य मेरेमाहात्म्य (दुर्गासप्तशती) कोभक्तिपूर्वकसुनेगा, वहमनुष्यमेरेप्रसादसेसबबाधाओंसेमुक्तहोकरधनधान्यएवंपुत्रसेसम्पन्नहो जायेगा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र मेंदुर्गासप्तशती कोपढनेया सुननेसेदेवीअत्यन्तप्रसन्नहोतीहैं एसा शास्त्रोक्त वचन हैं। सप्तशतीकापाठउसकीमूलभाषासंस्कृतमेंकरनेपरहीपूर्णप्रभावी होताहैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
व्यक्ति को श्रीदुर्गासप्तशती कोभगवतीदुर्गाकाहीस्वरूपसमझनाचाहिए।पाठकरनेसेपूर्वश्रीदुर्गासप्तशती कि पुस्तकका इसमंत्रसेपंचोपचारपूजनकरें– Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:नम:प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥ 
जो व्यक्ति दुर्गासप्तशतीके मूलसंस्कृतमेंपाठकरनेमेंअसमर्थहोंतो उस व्यक्ति को सप्तश्लोकीदुर्गाकोपढने से लाभ प्राप्त होता हैं।क्योकि सातश्लोकोंवालेइसस्तोत्रमेंश्रीदुर्गासप्तशतीकासारसमाया हुवाहैं।
जो व्यक्ति सप्तश्लोकीदुर्गाका भीकरसकेवहकेवलनर्वाणमंत्रकाअधिकाधिकजपकरें।
देवीकेपूजनकेसमयइसमंत्रका जप करे।
जयन्तीमङ्गलाकालीभद्रकालीकपालिनी।
दुर्गाक्षमाशिवाधात्रीस्वाहास्वधानमोऽस्तुते॥
देवीसे प्रार्थनाकरें
विधेहिदेविकल्याणंविधेहिपरमां -श्रियम्।रूपंदेहिजयंदेहियशोदेहिद्विषोजहि॥
अर्थातः हे देवि! आप मेराकल्याणकरो।मुझेश्रेष्ठसम्पत्तिप्रदानकरो।मुझेरूपदो, जयदो, यशदोऔरमेरेकामक्रोधइत्यादिशत्रुओंकानाशकरो।
विद्वानो के मतानुशार सम्पूर्णनवरात्रव्रतकापालनकरने में जो लोगोंअसमर्थ हो वह नवरात्र के सात रात्री,पांच रात्री, दों रात्री और एक रात्री का व्रत करके भी विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं।नवरात्र मेंनवदुर्गाकीउपासनाकरनेसेनवग्रहोंकाप्रकोपस्वतः शांतहो जाताहैं।

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OCT-2011

मां शैलपुत्री का पूजन सिद्धियां एवं उपलब्धियां प्रदान करता हैं।

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प्रथम शैलपुत्री
नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं।पर्वतराज (शैलराज)हिमालय के यहांपार्वती रुप में जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
भगवती नंदी नाम के वृषभ पर सवारहैं।  माता शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
मां शैलपुत्री को शास्रों में तीनो लोक के समस्त वन्यजीव-जंतुओं का रक्षक माना गया हैं। इसी कारण से वन्य जीवन जीने वाली सभ्यताओं में सबसे पहलेशैलपुत्री के मंदिर की स्थापना की जाती हैं जिस सें उनका निवास स्थान एवं उनके आस-पास के स्थान सुरक्षित रहे।Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मूल मंत्र:
वन्दे वांछितलाभायचन्दार्धकृतशेखराम्।  वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
ध्यान मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्।वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।
पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्।धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।भुक्ति मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।
कवच:-
ओमकार: मेशिर: पातुमूलाधार निवासिनी। हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी। श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी। हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत। फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां शैलपुत्री का मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को सदा धन-धान्य सेसंपन्न रहता हैं। अर्थात उसे जिवन में धन एवं अन्य सुख साधनो को कमी महसुस नहीं होतीं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र के प्रथमदिनकीउपासनासे योगसाधनाको प्रारंभ करने वाले योगीअपनेमनसेमूलाधारचक्रको जाग्रत कर अपनी उर्जा शक्ति को केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें अनेक प्रकार किसिद्धियां एवं उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।

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OCT-2010

मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?

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,मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?
लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:
नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता: प्रणता: स्मताम्॥
अर्थात: देवी देवी को नमस्कार हैं, महादेवी को नमस्कार हैं। महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार हैं। प्रकृति एवं भद्रा को मेरा प्रणाम हैं। हम लोग नियमपूर्वक देवी जगदम्बा को नमस्कार करते हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


उपरोक्त मंत्र से देवी दुर्गाकास्मरणकरप्रार्थनाकरनेमात्रसेदेवीप्रसन्नहोकरअपनेभक्तोंकीइच्छापूर्णकरतीहैं।समस्त देव गण जिनकी स्तुति प्राथना करते हैं। माँदुर्गाअपनेभक्तो कीरक्षाकरउन पर कृपा द्रष्टी वर्षाती हैं और उसको उन्नती के शिखर पर जाने का मार्ग प्रसस्त करती हैं। इस लिये ईश्वर में श्रद्धा विश्वार रखने वाले सभी मनुष्य को देवीकीशरणमेंजाकरदेवीसेनिर्मल हृदय से प्रार्थनाकरनी चाहिये।
देवीप्रपन्नार्तिहरेप्रसीद प्रसीदमातर्जगतोsखिलस्य।
पसीदविश्वेतरिपाहिविश्वं त्वमीश्चरीदेवीचराचरस्य।
अर्थात: शरणागतकिपीड़ादूरकरनेवालीदेवीआपहमपरप्रसन्नहों।संपूर्णजगतमाताप्रसन्नहों।विश्वेश्वरी देवी विश्वकिरक्षाकरो।देवी  आप हि एक मात्र चराचर जगतकिअधिश्वरीहो।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वमंगलमांगल्येशिवेसर्वार्थसाधिके
शरण्येत्रयम्बकेगौरिनारायणि  नमोऽस्तुते॥
सृष्टिस्थितिविनाशानांशक्तिभूतेसनातनि।
गुणाश्रयेगुणमयेनारायणिनमोऽस्तुते॥
अर्थात: हेदेवीनारायणी  आपसबप्रकारकामंगलप्रदानकरनेवालीमंगलमयीहो।कल्याण दायिनी शिवाहो।सबपुरूषार्थोंकोसिद्धकरनेवालीशरणा गतवत्सला तीननेत्रोंवालीगौरीहो, आपकोनमस्कारहैं।आपसृष्टिकापालनऔरसंहारकरने वाली शक्तिभूतासनातनीदेवी, आपगुणोंकाआधारतथासर्वगुणमयीहो।नारायणी देवी तुम्हेंनमस्कारहै।
इस मंत्र के जप से माँकि शरणागती प्राप्त होती हैं। जिस्से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापोंकानाश होता है।मांजननीसृष्टिकि आदि, अंतऔरमध्यहैं।
देवीसेप्रार्थनाकरें
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिंहरेदेविनारायणिनमोऽस्तुते
अर्थात: शरणमेंआएहुएदीनोंएवंपीडि़तोंकीरक्षामेंसंलग्नरहनेवालीतथासबकिपीड़ादूरकरनेवालीनारायणीदेवीआपको नमस्कारहै।
रोगानशेषानपहंसितुष्टा रूष्टातुकामानसकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानांविपन्नराणां त्वामाश्रिताहाश्रयतांप्रयान्ति।
अर्थातः देवी आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।st By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वबाधाप्रशमनंत्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेवत्वयाकार्यमस्यध्दैरिविनाशनम्।
अर्थातःहेसर्वेश्वरीआपतीनोंलोकोंकिसमस्तबाधाओंकोशांतकरोऔरहमारेसभी शत्रुओंकानाशकरतीरहो।
Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH 
शांतिकर्मणिसर्वत्रतथादु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासुचोग्रासुमहात्मयंशणुयात्मम।
अर्थातःसर्वत्रशांतिकर्ममें, बुरेस्वप्नदिखाईदेनेपरतथाग्रह जनित पीड़ाउपस्थितहोनेपरमाहात्म्यश्रवणकरनाचाहिए।इससेसबपीड़ाएँशांतऔरदूरहोजातीहैं।
यहि कारण हैं सहस्त्रयुगों से मां भगवती जगतजननी दुर्गा की उपासना प्रति वर्ष वसंत, आश्विन एवं गुप्त नवरात्री में विशेष रुप से करने का विधान हिन्दु धर्म ग्रंथो में हैं।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


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OCT-2011

नवरात्र में मां दुर्गा के नवरुपों कि उपासना कल्याणकारी हैं

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नवरात्र में मां दुर्गा के नवरुपों कि उपासना कल्याणकारी हैं
लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना निम्न मंत्रों के द्वारा की जाती हैप्रथम दिन शैलपुत्री की एवं क्रमशः मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना की जाती है।
शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चन्द्रघण्टा कूष्माण्डा स्कन्दमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री
1.शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् 
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् 

2. ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू 
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा 

3. चन्द्रघण्टा
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता 
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता 

4. कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव  
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे 

5. स्कन्दमाता
सिंहासनगतानित्यंपद्माश्रितकरद्वया
शुभदास्तुसदादेवीस्कन्दमातायशस्विनी

6. कात्यायनी
चन्द्रहासोज्वलकराशार्दूलवरवाहना
कात्यायनीशुभंदद्याद्देवीदानवघातिनी

7. कालरात्रि
एकवेणीजपाकर्णपूरानग्नाखरास्थिता
लम्बोष्ठीकर्णिकाकर्णीतैलाभ्यक्तशरीरिणी
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा
वर्धनमूर्धध्वजाकृष्णाकालरात्रिर्भयङ्करी

8. महागौरी
श्वेतेवृषेसमारुढाश्वेताम्बरधराशुचिः
महागौरीशुभंदद्यान्महादेवप्रमोददा

9. सिद्धिदात्री

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि
सेव्यमानासदाभूयात्सिद्धिदासिद्धिदायिनी

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OCT-2011

गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर- 2011 में प्रकशित लेख

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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर– 2011 में प्रकशित लेख
आद्य शक्ति विशेष
अनुक्रम
नवरात्र विशेष
नवरात्र में मां दुर्गा के नवरुपोंकिउपासनाकल्याणकारी हैं
6
मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?
7
शारदीयनवरात्रव्रतसे सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं
8
कैसे करें नवरात्रव्रत?
9
देवी आराधना से अभिष्ट कार्यो की सिद्धि हेतु
11
आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान
12
सरल विधि-विधान से शारदीयनवरात्रव्रतउपासना
13
नवरात्र स्पेशल घट स्थापना विधि
14
नवार्ण मंत्र से होती हैं नवग्रह शांति
18
दुर्गाष्टाक्षर मन्त्र साधना
22
कुमारी पूजन से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
23
माता के 52 शक्ति पीठ
26
नवार्ण मन्त्र साधना
20
दीपावली विशेष
धन तेरस शुभ मुहूर्त (24 अक्तूबर, 2011)
47
दीपावली पूजन मुहूर्त (26-अक्तूबर-2011)
48
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु करें राशि मंत्र का जप
53
लक्ष्मी प्राप्ति के सरल उपाय 
54
लक्ष्मी मंत्र
56
दीप जलाने का महत्व क्या हैं?
63
धनत्रयोदशी पर यम-दीपदान अकालमृत्यु को दूर करता हैं
66
धनत्रयोदशी पर यमदीपदान क्यों किया जाता हैं?
68
दीपावली के दिन कैसे करें बहीखाता तुला पूजन?
69
दीपावली का महत्व और लक्ष्मी पूजन विधि
70
श्री धनवंतरि व्रत कथा
71
सप्त श्री का चमत्कार
74
स्फटिक श्रीयंत्र का पूजन
75
मंत्र एवं स्तोत्र
दुर्गा चालीसा
32
श्रीकृष्ण कृत देवी स्तुति,
33
ऋग्वेदोक्त देवी सूक्तम्,
33
सप्‍तश्र्लोकी दुर्गा,
34
दुर्गा आरती,
34
सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्‌,
35
भवान्यष्टकम्‌,
36
क्षमा-प्रार्थना,
36
दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्,
37
विश्वंभरी स्तुति,
38
महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्,
39
गुप्त सप्तशती,
41
दुर्गाष्टकम्‌,
35
सर्व ऐश्वर्य प्रद-लक्ष्मी-कवच
77
महालक्ष्मी कवच
78
महालक्ष्मी स्तुति
79
श्री कनकधारा स्तोत्र
80
श्री लक्ष्मी चालीसा
81
श्री सूक्त
82
धनलक्ष्मी स्तोत्र
82
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र
83
देवकृत लक्ष्मी स्तोत्रम्
83
हमारे उत्पाद
दुर्गा बीसा यंत्र
6
मंत्र सिद्ध दैवी यंत्र सूचि
10
मंत्रसिद्ध लक्ष्मी यंत्रसूचि
10
गणेश लक्ष्मी यंत्र
13
भाग्य लक्ष्मी दिब्बी
17
द्वादश महा यंत्र
21
शादी संबंधित समस्या
37
मंत्र सिद्ध गणेश यंत्र
49
मंगल यंत्र से ऋण मुक्ति
50
मंत्र सिद्ध दुर्लभ सामग्री
55
सर्व कार्य सिद्धि कवच
57
जैन धर्मके विशिष्ट यंत्रोसूची
58
घंटाकर्ण महावीर सर्व सिद्धि महायंत्र
59
अमोद्य महामृत्युंजय कवच
60
राशी रत्न एवं उपरत्न 
60
श्रीकृष्ण बीसा यंत्र/ कवच
61
राम रक्षा यंत्र
62
मंत्र सिद्ध रूद्राक्ष
65
मंत्रसिद्ध स्फटिक श्री यंत्र
67
लक्ष्मी यंत्र
74
कनकधारा यंत्र
80
राशि रत्न
88
मंत्र सिद्ध सामग्री
94
सर्व रोगनाशक यंत्र/
101
मंत्र सिद्ध कवच
103
YANTRA
104
GEMS STONE
106
स्थायी लेख
संपादकीय
4
पति-पत्नी में कलह निवारण हेतु
22
शरद पूर्णिमा (11-अक्टूबर-2011)
44
कोजागरी पूर्णिमा (11-अक्टूबर-2011)
45
दुर्वा पूजनमें रखे सावधानियां
45
करवा चौथ व्रत (15-अक्टूबर-2011)
46
नये कपडे और ज्योतिष
50
मासिकराशिफल
84
अक्टूबर 2011मासिक पंचांग
89
अक्टूबर-2011 मासिक व्रत-पर्व-त्यौहार
 91
अक्टूबर 2011विशेष योग
 97
दैनिकशुभ एवं अशुभ समय ज्ञानतालिका
97
दिनरातकेचौघडिये
98
दिनरात कि होरासूर्योदय से सूर्यास्त तक
99
ग्रह चलन अक्टूबर2011
100
सूचना
108
हमाराउद्देश्य
110
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आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान (28 सितम्बर 2011)

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आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH,
पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 

घट स्थापनकी शास्त्रोक्त विधि इस प्रकार हैं।  GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु चित्रा नक्षत्र और वैधृतियोग को वर्जित माना गया हैं। (चित्रा नक्षत्र 28 सितंबर 2011 को दोपहर 01:37:33बजे से लग रहा हैं।) घट स्थापना में चित्रा नक्षत्र को निषेध माना गया हैं। अतः घट स्थापना इससे पूर्व करना शुभ होता हैं।
विद्वनो के मत से इस वर्ष शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में सूर्योदयी नक्षत्र हस्त नक्षत्र रहेगा। हस्त नक्षत्र को पूजन हेतु उत्तम माना जाता हैं। हैं। इस लिये सूर्योदय से 6.12 बजे के बाद से ही कलश (घट) की स्थापना करना शुभदायक रहेगा।
यदि ऎसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
कलश स्थापना हेतु शुभ मुहूर्त
  • लाभ मुहूर्त सुबह 06:12 से 07:42 तक
  • अमृत मुहूर्त सुबह 07:42 से 09:12 तक
  • शुभ मुहूर्त सुबह 10:42 से 12:12 तक
  • के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त रहेंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं बोएं तथा उस पर अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
यदि पूर्ण विधि-विधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेश-अंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ब्राह्मण द्वारा कराएं अथवा अमर्थता हो, तो स्वयं करें।
पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें- GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।

कलश स्थापना की संपूर्ण-विधि गुरुत्व ज्योतिष मासिक पत्रिका के अक्टूबर-2011 के अंक में उप्लब्ध हैं।