श्री गणेश सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय कैसे बने?
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक शुभकार्य करने के पूर्व भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती हैं इसी लिये ये किसी भी कार्य का शुभारंभ करने से पूर्व कार्य का “श्री गणेश करना” कहा जाता हैं। एवं प्रत्यक शुभ कार्य या अनुष्ठान करने के पूर्व ‘‘श्री गणेशाय नमः” का उच्चारण किया जाता हैं। गणेश को समस्त सिद्धियों को देने वाला माना गया है। सारी सिद्धियाँ गणेश में वास करती हैं।
इसके पीछे मुख्य कारण हैं की भगवान श्री गणेश समस्त विघ्नों को टालने वाले हैं, दया एवं कृपा के अति सुंदर महासागर हैं, एवं तीनो लोक के कल्याण हेतु भगवान गणपति सब प्रकार से योग्य हैं। समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले गणेश विनायक हैं। गणेशजी विद्या-बुद्धि के अथाह सागर एवं विधाता हैं।
भगवान गणेश को सर्व प्रथम पूजे जाने के विषय में कुछ विशेष लोक कथा प्रचलित हैं। इन विशेष एवं लोकप्रिय कथाओं का वर्णन यहा कर रहें हैं।
इस के संदर्भ में एक कथा है कि महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को से बोलकर लिखवाया था, जिसे स्वयं गणेशजी ने लिखा था। अन्य कोई भी इस ग्रंथ को तीव्रता से लिखने में समर्थ नहीं था।
सर्वप्रथम कौन पूजनीय हो?
कथा इस प्रकार हैं : तीनो लोक में सर्वप्रथम कौन पूजनीय हो?, इस बात को लेकर समस्त देवताओं में विवाद खडा हो गया। जब इस विवादने बडा रुप धारण कर लिये तब सभी देवता अपने-अपने बल बुद्धिअ के बल पर दावे प्रस्तुत करने लगे। कोई परीणाम नहीं आता देख सब देवताओं ने निर्णय लिया कि चलकर भगवान श्री विष्णु ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
सभी देव गण विष्णु लोक मे उपस्थित हो गये, भगवान विष्णु ने इस मुद्दे को गंभीर होते देख श्री विष्णु ने सभी देवताओं को अपने साथ लेकर शिवलोक में पहुच गये। शिवजी ने कहा इसका सही निदान सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी हि बताएंगे। शिवजी श्री विष्णु एवं अन्य देवताओं के साथ मिलकर ब्रह्मलोक पहुचें और ब्रह्माजी ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
समस्त देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए अपने अपने वाहनों पर सवार होकर निकल पड़े। लेकिन, गणेशजी का वाहन मूषक था। भला मूषक पर सवार हो गणेश कैसे ब्रह्माण्ड के तीन चक्कर लगाकर सर्वप्रथम लौटकर सफल होते। लेकिन गणपति परम विद्या-बुद्धिमान एवं चतुर थे।
गणपति ने अपने वाहन मूषक पर सवार हो कर अपने माता-पित कि तीन प्रदक्षिणा पूरी की और जा पहुँचे निर्णायक ब्रह्माजी के पास। ब्रह्माजी ने जब पूछा कि वे क्यों नहीं गए ब्रह्माण्ड के चक्कर पूरे करने, तो गजाननजी ने जवाब दिया कि माता-पित में तीनों लोक, समस्त ब्रह्माण्ड, समस्त तीर्थ, समस्त देव और समस्त पुण्य विद्यमान होते हैं।
अतः जब मैंने अपने माता-पित की परिक्रमा पूरी कर ली, तो इसका तात्पर्य है कि मैंने पूरे ब्रह्माण्ड की प्रदक्षिणा पूरी कर ली। उनकी यह तर्कसंगत युक्ति स्वीकार कर ली गई और इस तरह वे सभी लोक में सर्वमान्य ‘सर्वप्रथम पूज्य‘ माने गए।
लिंगपुराण के अनुसार (105। 15-27) – एक बार असुरों से त्रस्त देवतागणों द्वारा की गई प्रार्थना से भगवान शिव ने सुर-समुदाय को अभिष्ट वर देकर आश्वस्त किया। कुछ ही समय के पश्चात तीनो लोक के देवाधिदेव महादेव भगवान शिव का माता पार्वती ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है।
गणेशजी की पौराणिक कथा
भगवान शिव कि अन उपस्थिति में माता पार्वती ने विचार किया कि उनका स्वयं का एक सेवक होना चाहिये, जो परम शुभ, कार्यकुशल तथा उनकी आज्ञा का सतत पालन करने में कभी विचलित न हो। इस प्रकार सोचकर माता पार्वती नें अपने मंगलमय ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
इसी दौरान भगवान शिव उधर आ जाते हैं। गणेशजी शिवजी को रोक कर कहते हैं कि आप उधर नहीं जा सकते हैं। यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं और गणेश जी को रास्ते से हटने का कहते हैं किंतु गणेश जी अड़े रहते हैं तब दोनों में युद्ध हो जाता है। युद्ध के दौरान क्रोधित होकर शिवजी बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। शिव के इस कृत्य का जब पार्वती को पता चलता है तो वे विलाप और क्रोध से प्रलय ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
पार्वतीजी के दुःख को देखकर शिवजी ने उपस्थित गणको आदेश देते हुवे कहा सबसे पहला जीव मिले, उसका सिर काटकर इस बालक के धड़ पर लगा दो, तो यह बालक जीवित हो उठेगा। सेवको को सबसे पहले हाथी का एक बच्चा मिला। उन्होंने उसका सिर लाकर बालक के धड़ पर लगा दिया, बालक जीवित हो उठा।
उस अवसर पर तीनो देवताओं ने उन्हें सभी लोक में अग्रपूज्यता का वर प्रदान किया और उन्हें सर्व अध्यक्ष पद पर विराजमान किया। स्कंद पुराण
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार (गणपतिखण्ड) –
शिव–पार्वती के विवाह होने के बाद उनकी कोई संतान नहीं हुई, तो शिवजी ने पार्वतीजी से भगवान विष्णु के शुभफलप्रद ‘पुण्यक’ व्रत करने को कहा पार्वती के ‘पुण्यक’ व्रत से भगवान विष्णु ने प्रसन्न हो कर पार्वतीजी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। ‘पुण्यक’ व्रत के प्रभाव से पार्वतीजी को एक पुत्र उत्पन्न हुवा।
पुत्र जन्म कि बात सुन कर सभी देव, ऋषि, गंधर्व आदि सब गण बालक के दर्शन हेतु पधारे। इन देव गणो में शनि महाराज भी उपस्थित हुवे। किन्तु शनिदेव ने पत्नी द्वारा दिये गये शाप के कारण बालक का दर्शन नहीं किया। परन्तु माता पार्वती के बार-बार कहने पर शनिदेव ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
इस पर भगवान् विष्णु ने श्रेष्ठतम उपहारों से भगवान गजानन कि पूजा कि और वरदान दिया कि
सर्वाग्रे तव पूजा च मया दत्ता सुरोत्तम।
सर्वपूज्यश्च योगीन्द्रो भव वत्सेत्युवाच तम्।।
(गणपतिखं. 13। 2)
भावार्थ: ‘सुरश्रेष्ठ! मैंने सबसे पहले तुम्हारी पूजा कि है, अतः वत्स! तुम सर्वपूज्य तथा योगीन्द्र हो जाओ।’
ब्रह्मवैवर्त पुराण में ही एक अन्य प्रसंगान्तर्गत पुत्रवत्सला पार्वती ने गणेश महिमा का बखान करते हुए परशुराम से कहा –
त्वद्विधं लक्षकोटिं च हन्तुं शक्तो गणेश्वरः।
जितेन्द्रियाणां प्रवरो नहि हन्ति च मक्षिकाम्।।
तेजसा कृष्णतुल्योऽयं कृष्णांश्च गणेश्वरः।
देवाश्चान्ये कृष्णकलाः पूजास्य पुरतस्ततः।।
(ब्रह्मवैवर्तपु., गणपतिख., 44। 26-27)
भावार्थ: जितेन्द्रिय पुरूषों में श्रेष्ठ गणेश तुममें जैसे लाखों-करोड़ों जन्तुओं को मार डालने की शक्ति है; परन्तु तुमने मक्खी पर भी हाथ नहीं उठाया। श्रीकृष्ण के अंश से उत्पन्न हुआ वह गणेश तेज में श्रीकृष्ण के ही समान है। अन्य देवता श्रीकृष्ण की कलाएँ हैं। इसीसे इसकी अग्रपूजा होती है।
शास्त्रीय मतसे
शास्त्रोमें पंचदेवों की उपासना करने का विधान हैं।
आदित्यं गणनाथं च देवीं रूद्रं च केशवम्।
पंचदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्।। (शब्दकल्पद्रुम)
भावार्थ: – पंचदेवों कि उपासना का ब्रह्मांड के पंचभूतों के साथ संबंध है। पंचभूत पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश से बनते हैं। और पंचभूत के आधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ(गणेश), देवी, रूद्र और केशव ये पंचदेव भी पूजनीय हैं। हर एक तत्त्व का हर एक देवता स्वामी हैं-
आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः।।
भावार्थ:- क्रम इस प्रकार हैं महाभूत अधिपति
1. क्षिति (पृथ्वी) शिव
2. अप् (जल) गणेश
3. तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी)
4. मरूत् (वायु) सूर्य (अग्नि)
5. व्योम (आकाश) विष्णु
भगवान् श्रीशिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा का विधान हैं। भगवान् विष्णु के आकाश तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं। भगवती देवी के अग्नि तत्त्व ……>> Read Full Article In GURUTVA JYOTISH SEP-2012
आचार्य मनु का कथन है–
“अप एच ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत्।” (मनुस्मृति 1)
भावार्थ:
इस प्रमाण से सृष्टि के आदि में एकमात्र वर्तमान जल का अधिपति गणेश हैं।
में प्रकाशित किया गया हैं।