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Posts tagged ‘नवरात्री’

गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर-2014 में प्रकशित लेख GURUTVAJYOTISH E-MAGAZINE October-2014

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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर-2014 में
प्रकशित लेख
नवरात्र विशेष

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अनुक्रम
नवरात्र विशेषांक में पढे़
दुर्गा उपासना का आध्यात्मिक महत्व
7
प्रथम शैलपुत्री
8
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
9
तृतीयं चन्द्रघण्टा
10
चतुर्थ कूष्माण्डा
11
पंचम स्कंदमाता
12
षष्ठम् कात्यायनी
13
सप्तम कालरात्रि
14
अष्टम महागौरी
15
नवम् सिद्धिदात्री
16
शारदीय नवरात्र व्रत से सुखसमृद्धि दायक हैं
17
नवरात्र व्रत की सरल विधि?
18
सरल विधिविधान से शारदीय नवरात्र व्रत उपासना
19
आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधिविधान25 सितम्बर
20
नवरात्र विशेष घट स्थापना विधि
22
नवार्ण मंत्र जप से दूर करे नवग्रह पीड़ा
26
विभिन्न कामनापूर्ति हेतु नवार्ण मंत्र साधना
28
पतिपत्नी में कलह निवारण हेतु
30
दुर्गाष्टाक्षर मन्त्र साधना
30
कुमारी पूजन से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
31
नवदुर्गा यंत्र सर्व मंगलकारी सौभाग्य दाय हैं..
34
आद्यशक्ति के तीन चमत्कारी यंत्र
36
देवी कवच दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते है
38
मनोकामना पूर्ति हेतु नवरात्र में देवी को कैसे अर्पण करें भोग
40
माँ दुर्गा की कृपा प्राप्ति हेतु सरल साधनाएं
42
नवरात्री माँ को प्रसन्न करने का सुनहरा अवसर
45
नवरात्र में दस महाविद्या की उपासना विशेष लाभप्रद हैं
46
नवरात्री में ग्रह शांति के सरल उपाय
49
दुर्वा पूजन में रखे सावधानियां
51
॥दुर्गा चालीसा॥
52
श्रीकृष्ण कृत देवी स्तुति
53
ऋग्वेदोक्त देवी सूक्तम्
53
सप्तश्र्लोकी दुर्गा
54
दुर्गा आरती
54
सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
55
दुर्गाष्टकम्
55
भवान्यष्टकम्
56
क्षमाप्रार्थना
56
दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
57
विश्वंभरी स्तुति
58
महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्
59
गुप्त सप्तशती
61
माँ दुर्गा के चमत्कारी मन्त्र
64
नवरात्र में लाभदायक कन्या पूजन
67
शाप विमोचन मंत्र
69
मां के चरणों निवास करते समस्त हैं तीर्थ
70
श्री मार्कण्डेय कृत लघु दुर्गा सप्तशती स्तोत्रम्
71
नव दुर्गा स्तुति
72
नवदुर्गा रक्षामंत्र
72
देवी उपासना में उपयुक्त एवं निषिद्ध पत्र पुष्प
73
शरद पूर्णिमा (08-अक्टूबर2014)
74
कोजागरी पूर्णिमा (08-अक्टूबर2014)
75
गुरु पुष्यामृत योग
76
स्थायी लेख
संपादकीय
4
अक्टूबर 2014 मासिक पंचांग
86
अक्टूबर 2014  मासिक व्रतपर्वत्यौहार
88
अक्टूबर 2014
विशेष योग
105
दैनिक शुभ एवं अशुभ समय ज्ञान तालिका
105
दिनरात के चौघडिये
106
दिनरात कि होरा
107
ग्रह चलन अक्टूबर2014
108
 GURUTVAJYOTISH E-MAGAZINE October2014
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तृतीयं चन्द्रघण्टा
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2012)
नवरात्र के तीसरे दिन मां के चन्द्रघण्टा स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं।  चन्द्रघण्टा का स्वरूप शांतिदायक और परम कल्याणकारी हैं।  चन्द्रघण्टा के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र शोभित रहता हैं । इस लिये मां को चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता हैं। चन्द्रघण्टा के देह का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं और देवि उपस्थिति में चारों तरफ अद्भुत तेज दिखाई देता हैं। 

मां तीन नेत्र एवं दस भुजाए हैं, जिसमें कमल, धनुष-बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि अस्त्र-शस्त्र, बाण आदि सुशोभित रहते हैं। मां के कंठ में सफेद पुष्पों कि माला और शीर्ष पर रत्नजडि़त मुकुट शोभायमान हैं।  

चन्द्रघण्टा का वाहन सिंह हैं, इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने की होती हैं। इनके घण्टे सी भयानक प्रचंड ध्वनि से अत्याचारी दैत्य, दानव, राक्षस व दैव भयभित रहते हैं।

मंत्र:
पिण्डज
प्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं
तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।
ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढादशभुजांचन्द्रघण्टायशस्वनीम्॥
कंचनाभांमणिपुर स्थितांतृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग गदा त्रिशूल चापहरंपदमकमण्डलु माला वराभीतकराम्।
पटाम्बरपरिधांनामृदुहास्यांनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणिरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधाराकातंकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकंटिनितम्बनीम्॥
स्त्रोत:-
आपदुद्वारिणी स्वंहिआघाशक्ति: शुभा पराम्।
मणिमादिसिदिधदात्रीचन्द्रघण्टेप्रणभाम्यहम्॥
चन्द्रमुखीइष्टदात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्रीआनंददात्रीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणीइच्छामयीऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥
कवच:-
रहस्यं श्रुणुवक्ष्यामिशैवेशीकमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्यकवचंसर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासंबिना विनियोगंबिना शापोद्धारबिना होमं।
स्नानंशौचादिकंनास्तिश्रद्धामात्रेणसिद्धिदम्॥
कुशिष्यामकुटिलायवंचकायनिन्दाकायच।
न दातव्यंन दातव्यंपदातव्यंकदाचितम्॥
मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने से व्यक्ति का मणिपुर चक्र जाग्रत हो जाता हैं। उपासना से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं उसे समस्त सांसारिक आधि-व्याधि से
मुक्ति
मिलती हैं। इसके उपरांत व्यक्ति को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होनता प्राप्त होती हैं। व्यक्ति के साहस एव विरता में वृद्धि होती हैं। व्यक्ति स्वर में मिठास आती हैं उसके आकर्षण में भी वृद्धि होती हैं। चन्द्रघण्टा को ज्ञान की देवी भी माना गया है।
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका अक्टूबर-2012 का अंक पढें।
इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो से यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।
GURUTVAJYOTISH E-MAGAZINE OCT-2012

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माँ ब्रह्मचारिणी के पूजन से सद् गुणों की वृद्धि होती है

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द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2012)
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। क्योकि ब्रह्म का अर्थ हैं तप। मां ब्रह्मचारिणी तप का आचरण करने
वाली भगवती हैं इसी कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
शास्त्रो में मां ब्रह्मचारिणी को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया हैं।  शास्त्रो में ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप का वर्णन पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत दिव्य दर्शाया गया हैं।  
मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने  उनके दाहिने हाथ में अष्टदल कि जप माला एवं बायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता हैं। शक्ति स्वरुपा देवी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर तपस्या रत रहीं और 3000 साल तक शिव कि तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर कि, उनकी इसी कठिन तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।
मंत्र:
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्। 
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन
पयोधराम्। कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।
स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्।ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनीशांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच:-
त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरीषोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को अनंत फल कि प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति में  तप, त्याग, सदाचार, संयम जैसे सद् गुणों कि वृद्धि होती हैं।
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका अक्टूबर-2012 का अंक पढें।
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मां शैलपुत्री अनेक प्रकार की सिद्धियां प्रदाता हैं

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प्रथम शैलपुत्री
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2012)
नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। पर्वतराज (शैलराज) हिमालय के यहां पार्वती रुप में जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता हैं।
भगवती नंदी नाम के वृषभ पर सवार हैं।  माता शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ
में कमल पुष्प सुशोभित हैं।
मां शैलपुत्री को शास्रों में तीनो लोक के समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना गया हैं। इसी कारण से वन्य जीवन जीने वाली सभ्यताओं में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना की जाती हैं जिस सें उनका निवास स्थान एवं उनके आस-पास के स्थान सुरक्षित रहे।
मूल मंत्र:
वन्दे वांछितलाभायचन्दार्धकृतशेखराम्।  वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
ध्यान मंत्र:-
वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्।वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।
पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्।
स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।
कवच:-
ओमकार: मेशिर:पातुमूलाधार निवासिनी।हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी।श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत।फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
मां शैलपुत्री का मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को सदा धन-धान्य से संपन्न रहता हैं। अर्थात उसे जिवन में धन एवं अन्य सुख साधनो को कमी महसुस नहीं होतीं।
नवरात्र के प्रथम दिन की उपासना से योग साधना को प्रारंभ करने वाले योगी अपने मन सेमूलाधारचक्र को जाग्रत कर अपनी उर्जा शक्ति को केंद्रित करते हैं, जिससे उन्हें अनेक प्रकार कि सिद्धियां एवं उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका अक्टूबर-2012 का अंक पढें।
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आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान (16-अक्टूबर-2012)

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आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधिविधान (16-अक्टूबर-2012)
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2012)
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष 2012
तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे।
पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है।
घटस्थापनकीशास्त्रोक्तविधिइसप्रकारहैं।
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु चित्रा नक्षत्र को वर्जित माना गया हैं।
(चित्रा नक्षत्र 16-अक्टूबर-2012 को प्रातः 06:4
5:28 बजे तक रहेगा।) घट
स्थापना में चित्रा नक्षत्र को निषेध माना गया हैं। अतः घट स्थापना इससे पश्चयात
करना शुभ होता हैं।
घट स्थापना हेतु सबसे शुभ अभिजित मुहुर्त माना गया हैं। जो
16-अक्टूबर-2012 को सुबह 11:30 से दोपहर 12:42 बजे के बीच है।
विद्वनो के मत से इस वर्ष शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में सूर्योदयी नक्षत्र चित्रा
रहेगा जो प्रातः
06:45:28 बजे समाप्त हो जायेगा और उसके पश्चयात विशाखा
नक्षत्र रहेगा।
विशाखा नक्षत्र को पूजन हेतु उत्तम माना जाता हैं। हैं। इस लिये सूर्योदय के
पश्चयात
06:45:28 बजे के बाद से ही कलश (घट) की स्थापना करना शुभदायक रहेगा।
इस वर्ष प्रतिपदा तिथि दोपहर 02:17:56 बजे तक रहने के कारण धट स्थापना इस समय से
पूर्व करना उत्तम रहेगा। लेकिन शास्त्रोक्त विधान से प्रतिपदा तिथि सोमवार
15 अक्टूबर-2012 को संध्या 17:32:20 से प्रारंभ होकर मंगलवार 16-अक्टूबर-2012 को दोपहर 02:17:56 बजे तक रहने से प्रतिपदा तिथि सूर्योदय कालिन
तिथि होने से संपूर्ण दिन प्रतिपदा माना जायेगा।
घट स्थापना के शुभ मुहुर्त सुबह 9.30
से 11 बजे, सुबह 11.30 से दोपहर 12.42 तक अभिजित मुहुर्त, सुबह 10.59 बजे से दोपहर 1.05 बजे तक वृष्चिक्र लग्न मुहुर्त, दोपहर 2.52 से शाम 4.23 तक कुंभ लग्न मुहुर्त और 7.28 बजे से रात्रि 9.24 तक वृषभ लग्न मुर्हुत रहेगा। कुछ जानकार
विद्वानो का मत हैं की नवरात्र स्वयं अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहुर्त होने के
कारण इस तिथि में व्याप्त समस्त दोष स्वतः नष्ट हो जाते हैं इस लिए घट स्थापना
प्रतिपदा के दिन किसी भी समय कर सकते हैं।
यदि ऎसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं।
कलशस्थापनाहेतुअन्य शुभमुहूर्त
·
लाभ मुहूर्त सुबह १०:30
से 12 बजे तक
·
अमृत मुहूर्त दिन
12.00
 से 01.30 बजे तक
·
शुभ मुहूर्त सुबह
03.00 से 04.30 बजे तक
·
अभिजित मुहुर्त
सुबह 11.30 से दोपहर 12.42 बजे तक
·
वृष्चिक लग्न सुबह
10.59 बजे से दोपहर 1.05 बजेतक
·
कुंभ लग्न दोपहर
2.52 से शाम 4.23 बजे तक
·
वृषभ लग्न 7.28
बजे से रात्रि 9.24 बजे तक
के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त ……………..>>
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OCT-2012
घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं ……………..>>
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OCT-2012
यदि पूर्ण विधिविधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेशअंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ……………..>>
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OCT-2012
पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी
प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए।
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजनकेसमयइसमंत्रकाजपकरें
भोदीपब्रह्मरूपस्त्वंह्यन्धकारनिवारक।
इमांमयाकृतांपूजांगृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।
नोट: उपरोक्त वर्णित मुहूर्त को
सूर्योदय कालिन तिथि या समय का निरधारण नई दिल्ली के अक्षांश रेखांश के अनुशार आधुनिक पद्धति से किया गया हैं इस विषय में विभिन्न मत एवं सूर्योदय ज्ञात करने का तरीका भिन्न होने के कारण सूर्योदय समय का निरधारण भिन्न हो सकता हैं सूर्योदय समय का निरधारण स्थानिय सूर्योदय के अनुशार हि करना उचित होगा
इस लिए किसी भी मुहूर्त का चयन करने से पूर्व किसी विद्वान व जानकार से
इस विषय में सलाह विमर्श करना उचित रहेगा।
संपूर्ण लेख पढने के
लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका अक्टूबर-2012 का अंक पढें।
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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर-2012 में प्रकशित लेख

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गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अक्टूबर2012 में प्रकशित लेख
नवरात्र विशेष विशेष
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अनुक्रम
नवरात्र
विशेष में पढे़
मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?
6
प्रथम शैलपुत्री
7
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
8
तृतीयं चन्द्रघण्टा
9
चतुर्थ कूष्माण्डा
10
पंचम स्कंदमाता
11
षष्ठम् कात्यायनी
12
सप्तम कालरात्रि
13
अष्टम महागौरी
14
नवम् सिद्धिदात्री
15
शारदीय नवरात्र व्रत से सुखसमृद्धि दायक हैं
16
नवरात्र व्रत की सरल विधि?
17
देवी कृपा से मनोवांच्छित कार्यो सिद्धि
18
सरल विधिविधान से शारदीय नवरात्र व्रत
19
आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त
20
नवरात्र स्पेशल घट स्थापना विधि
22
नवार्ण मंत्र द्वारा नवग्रह कष्ट निवारण
26
कामनापूर्ति हेतु नवार्ण मंत्र साधना
28
पतिपत्नी में कलह निवारण हेतु
30
कुमारी पूजन से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।
31
माँ दुर्गा के चमत्कारी मन्त्र
46
नवरात्र में लाभदायक कन्या पूजन
49
मां के चरणों निवास करते समस्त हैं तीर्थ
54
पंच देवोपासना में उपयुक्त एवं निषिद्ध पत्र पुष्प
55
हमारेउत्पाद
भाग्य लक्ष्मी दिब्बी
18
दुर्गा बीसा यंत्र
21
मंत्रसिद्ध स्फटिक श्री यंत्र
29
सर्व कार्य सिद्धि कवच
63
सर्वसिद्धिदायक मुद्रिका
64
द्वादश महा यंत्र
65
शनि पीड़ा निवारक 
68
श्री हनुमान यंत्र
70
मंत्रसिद्ध लक्ष्मी यंत्रसूचि
71
मंत्र सिद्ध
दैवी यंत्र सूचि
71
मंत्र सिद्ध रूद्राक्ष
73
श्रीकृष्ण बीसा यंत्र / कवच
74
राम रक्षा यंत्र
75
जैन धर्मके विशिष्ट यंत्र
76
घंटाकर्ण महावीर सर्व सिद्धि महायंत्र
77
अमोद्य महामृत्युंजय कवच
78
राशी रत्न एवं उपरत्न 
78
सर्व रोगनाशक यंत्र/
95
मंत्र सिद्ध कवच
97
YANTRA LIST
98
GEM STONE
100
स्थायी लेख
संपादकीय
4
मासिक
राशि फल
79
सितम्बर
2012 मासिक पंचांग
83
सितम्बर-2012
मासिक व्रतपर्वत्यौहार
85
सितम्बर
2012विशेष योग
91
दैनिक
शुभ एवं अशुभ समय ज्ञान तालिका
91
दिनरात के चौघडिये
92
दिनरात कि होरासूर्योदय से सूर्यास्त तक
93
ग्रह चलन सितम्बर 2012
94
सूचना
102
हमारा
उद्देश्य
104
GURUTVAJYOTISH E-MAGAZINE OCT-2012

OCT-2012

 

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मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?

 Why is the worship of godess Durga?, Why is worshiped Goddess Durga?, Why worship the goddess Durga in Hinduism?, देवी दुर्गा की पूजा क्यों होती है?,हिंदू धर्म में क्यों पूजा देवी दुर्गा होती है?, saardiya navratra sep-2011, sharad-navratri, navratri, First-navratri, navratri-2011, navratri-puja, navratra-story, navratri-festival, navratri-pooja, navratri puja-2011,  Durga Pooja, durga pooja 2011, Navratri Celebrations 28 sep 2011, नवरात्रव्रत, नवरात्रप्रारम्भ, नवरात्रमहोत्सव, नवरात्रपर्व, नवरात्रि, नवरात्री, नवरात्रिपूजनविधि
,मां दुर्गा की उपासना क्यों की जाती हैं?
लेखसाभार:गुरुत्वज्योतिषपत्रिका (अक्टूबर-2011)
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:
नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता: प्रणता: स्मताम्॥
अर्थात: देवी देवी को नमस्कार हैं, महादेवी को नमस्कार हैं। महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार हैं। प्रकृति एवं भद्रा को मेरा प्रणाम हैं। हम लोग नियमपूर्वक देवी जगदम्बा को नमस्कार करते हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


उपरोक्त मंत्र से देवी दुर्गाकास्मरणकरप्रार्थनाकरनेमात्रसेदेवीप्रसन्नहोकरअपनेभक्तोंकीइच्छापूर्णकरतीहैं।समस्त देव गण जिनकी स्तुति प्राथना करते हैं। माँदुर्गाअपनेभक्तो कीरक्षाकरउन पर कृपा द्रष्टी वर्षाती हैं और उसको उन्नती के शिखर पर जाने का मार्ग प्रसस्त करती हैं। इस लिये ईश्वर में श्रद्धा विश्वार रखने वाले सभी मनुष्य को देवीकीशरणमेंजाकरदेवीसेनिर्मल हृदय से प्रार्थनाकरनी चाहिये।
देवीप्रपन्नार्तिहरेप्रसीद प्रसीदमातर्जगतोsखिलस्य।
पसीदविश्वेतरिपाहिविश्वं त्वमीश्चरीदेवीचराचरस्य।
अर्थात: शरणागतकिपीड़ादूरकरनेवालीदेवीआपहमपरप्रसन्नहों।संपूर्णजगतमाताप्रसन्नहों।विश्वेश्वरी देवी विश्वकिरक्षाकरो।देवी  आप हि एक मात्र चराचर जगतकिअधिश्वरीहो।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वमंगलमांगल्येशिवेसर्वार्थसाधिके
शरण्येत्रयम्बकेगौरिनारायणि  नमोऽस्तुते॥
सृष्टिस्थितिविनाशानांशक्तिभूतेसनातनि।
गुणाश्रयेगुणमयेनारायणिनमोऽस्तुते॥
अर्थात: हेदेवीनारायणी  आपसबप्रकारकामंगलप्रदानकरनेवालीमंगलमयीहो।कल्याण दायिनी शिवाहो।सबपुरूषार्थोंकोसिद्धकरनेवालीशरणा गतवत्सला तीननेत्रोंवालीगौरीहो, आपकोनमस्कारहैं।आपसृष्टिकापालनऔरसंहारकरने वाली शक्तिभूतासनातनीदेवी, आपगुणोंकाआधारतथासर्वगुणमयीहो।नारायणी देवी तुम्हेंनमस्कारहै।
इस मंत्र के जप से माँकि शरणागती प्राप्त होती हैं। जिस्से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापोंकानाश होता है।मांजननीसृष्टिकि आदि, अंतऔरमध्यहैं।
देवीसेप्रार्थनाकरें
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिंहरेदेविनारायणिनमोऽस्तुते
अर्थात: शरणमेंआएहुएदीनोंएवंपीडि़तोंकीरक्षामेंसंलग्नरहनेवालीतथासबकिपीड़ादूरकरनेवालीनारायणीदेवीआपको नमस्कारहै।
रोगानशेषानपहंसितुष्टा रूष्टातुकामानसकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानांविपन्नराणां त्वामाश्रिताहाश्रयतांप्रयान्ति।
अर्थातः देवी आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।st By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


सर्वबाधाप्रशमनंत्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेवत्वयाकार्यमस्यध्दैरिविनाशनम्।
अर्थातःहेसर्वेश्वरीआपतीनोंलोकोंकिसमस्तबाधाओंकोशांतकरोऔरहमारेसभी शत्रुओंकानाशकरतीरहो।
Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH 
शांतिकर्मणिसर्वत्रतथादु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासुचोग्रासुमहात्मयंशणुयात्मम।
अर्थातःसर्वत्रशांतिकर्ममें, बुरेस्वप्नदिखाईदेनेपरतथाग्रह जनित पीड़ाउपस्थितहोनेपरमाहात्म्यश्रवणकरनाचाहिए।इससेसबपीड़ाएँशांतऔरदूरहोजातीहैं।
यहि कारण हैं सहस्त्रयुगों से मां भगवती जगतजननी दुर्गा की उपासना प्रति वर्ष वसंत, आश्विन एवं गुप्त नवरात्री में विशेष रुप से करने का विधान हिन्दु धर्म ग्रंथो में हैं।Post By : GURUTVA KARYALAY | GURUTVA JYOTISH


>> गुरुत्वज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर –2011)

OCT-2011

आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान (28 सितम्बर 2011)

Ashwin Navratri Ghat (Kalas) Sthapana Muhurt,Vidhi Vidhan (28-September-2011)saardiya navratra sep-2011, Ashwin navratra,Ghatasthapna, Ghat Sthapna performed, muharat, muhrat, auspicious tima for Ghat Sthapan, Ghat sthapana, Ashwin Navratri, auspicious time for kalash sthapan, sharad-navratri, navratri, second-navratri, navratri-2011, navratri-puja, navratra-story,  third-navratri, fourth-navratri, navratri-festival, navratri-pooja, navratri puja-2011,  Durga Pooja, durga pooja 201, ashvin Navratri Celebrations 28 sep 2011, नवरात्र घट स्थापन– 2011, नवरात्र कलश स्थापन, मुहूर्त, मूहूर्त, नवरात्र व्रत, नवरात्र प्रारम्भ, नवरात्र महोत्सव, नवरात्र पर्व, नवरात्रि, नवरात्री, नवरात्रि पूजन विधि, नवरात्रि के दौरान, નવરાત્રઘટસ્થાપન– 2011, નવરાત્રકલશસ્થાપન, મુહૂર્ત, મૂહૂર્ત, નવરાત્રવ્રત, નવરાત્રપ્રારમ્ભ, નવરાત્રમહોત્સવ, નવરાત્રપર્વ, નવરાત્રિ, નવરાત્રી, નવરાત્રિપૂજનવિધિ, નવરાત્રિકેદૌરાન, ನವರಾತ್ರಘಟಸ್ಥಾಪನ– 2011, ನವರಾತ್ರಕಲಶಸ್ಥಾಪನ, ಮುಹೂರ್ತ, ಮೂಹೂರ್ತ, ನವರಾತ್ರವ್ರತ, ನವರಾತ್ರಪ್ರಾರಮ್ಭ, ನವರಾತ್ರಮಹೋತ್ಸವ, ನವರಾತ್ರಪರ್ವ, ನವರಾತ್ರಿ, ನವರಾತ್ರೀ, ನವರಾತ್ರಿಪೂಜನವಿಧಿ, ನವರಾತ್ರಿಕೇದೌರಾನ, நவராத்ரகடஸ்தாபந– 2011, நவராத்ரகலஶஸ்தாபந, முஹூர்த, மூஹூர்த, நவராத்ரவ்ரத, நவராத்ரப்ராரம்ப, நவராத்ரமஹோத்ஸவ, நவராத்ரபர்வ, நவராத்ரி, நவராத்ரீ, நவராத்ரிபூஜநவிதி, நவராத்ரிகேதௌராந, నవరాత్రఘటస్థాపన– 2011, నవరాత్రకలశస్థాపన, ముహూర్త, మూహూర్త, నవరాత్రవ్రత, నవరాత్రప్రారమ్భ, నవరాత్రమహోత్సవ, నవరాత్రపర్వ, నవరాత్రి, నవరాత్రీ, నవరాత్రిపూజనవిధి, నవరాత్రికేదౌరాన, നവരാത്രഘടസ്ഥാപന– 2011, നവരാത്രകലശസ്ഥാപന, മുഹൂര്ത, മൂഹൂര്ത, നവരാത്രവ്രത, നവരാത്രപ്രാരമ്ഭ, നവരാത്രമഹോത്സവ, നവരാത്രപര്വ, നവരാത്രി, നവരാത്രീ, നവരാത്രിപൂജനവിധി, നവരാത്രികേദൗരാന, ਨਵਰਾਤ੍ਰਘਟਸ੍ਥਾਪਨ– 2011, ਨਵਰਾਤ੍ਰਕਲਸ਼ਸ੍ਥਾਪਨ, ਮੁਹੂਰ੍ਤ, ਮੂਹੂਰ੍ਤ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਵ੍ਰਤ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਪ੍ਰਾਰਮ੍ਭ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਮਹੋਤ੍ਸਵ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਪਰ੍ਵ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਿ, ਨਵਰਾਤ੍ਰੀ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਿਪੂਜਨਵਿਧਿ, ਨਵਰਾਤ੍ਰਿਕੇਦੌਰਾਨ, নৱরাত্রঘটস্থাপন– 2011, নৱরাত্রকলশস্থাপন, মুহূর্ত, মূহূর্ত, নৱরাত্রৱ্রত, নৱরাত্রপ্রারম্ভ, নৱরাত্রমহোত্সৱ, নৱরাত্রপর্ৱ, নৱরাত্রি, নৱরাত্রী, নৱরাত্রিপূজনৱিধি, নৱরাত্রিকেদৌরান, ନବରାତ୍ରଘଟସ୍ଥାପନ– 2011, ନବରାତ୍ରକଲଶସ୍ଥାପନ, ମୁହୂର୍ତ, ମୂହୂର୍ତ, ନଵରାତ୍ରଵ୍ରତ, ନଵରାତ୍ରପ୍ରାରମ୍ଭ, ନଵରାତ୍ରମହୋତ୍ସଵ, ନଵରାତ୍ରପର୍ଵ, ନଵରାତ୍ରି, ନଵରାତ୍ରୀ, ନଵରାତ୍ରିପୂଜନଵିଧି, ନଵରାତ୍ରିକେଦୌରାନ,
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH,
पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 

घट स्थापनकी शास्त्रोक्त विधि इस प्रकार हैं।  GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु चित्रा नक्षत्र और वैधृतियोग को वर्जित माना गया हैं। (चित्रा नक्षत्र 28 सितंबर 2011 को दोपहर 01:37:33बजे से लग रहा हैं।) घट स्थापना में चित्रा नक्षत्र को निषेध माना गया हैं। अतः घट स्थापना इससे पूर्व करना शुभ होता हैं।
विद्वनो के मत से इस वर्ष शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में सूर्योदयी नक्षत्र हस्त नक्षत्र रहेगा। हस्त नक्षत्र को पूजन हेतु उत्तम माना जाता हैं। हैं। इस लिये सूर्योदय से 6.12 बजे के बाद से ही कलश (घट) की स्थापना करना शुभदायक रहेगा।
यदि ऎसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
कलश स्थापना हेतु शुभ मुहूर्त
  • लाभ मुहूर्त सुबह 06:12 से 07:42 तक
  • अमृत मुहूर्त सुबह 07:42 से 09:12 तक
  • शुभ मुहूर्त सुबह 10:42 से 12:12 तक
  • के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त रहेंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं बोएं तथा उस पर अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
यदि पूर्ण विधि-विधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेश-अंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ब्राह्मण द्वारा कराएं अथवा अमर्थता हो, तो स्वयं करें।
पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें- GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH, 
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।

कलश स्थापना की संपूर्ण-विधि गुरुत्व ज्योतिष मासिक पत्रिका के अक्टूबर-2011 के अंक में उप्लब्ध हैं।